दलितोद्धार के क्षेत्र में आर्य समाज क्रांति लाया है। अब छूत-छात पंजाब प्रान्त में कहीं-कहीं है तो सही, पर आखिरी साँसों पर। आर्य समाज के दलितोद्धार की विशेषता यह हैं कि इसका आधार धार्मिक है। अस्पृश्यता चली ही धामिक भ्रान्तियों के कारण है। इसका वास्तविक प्रतिकार धर्म ही के रास्ते हो सकता है। आर्थिक संकट केवल अछूतों पर नहीं, और समुदायों पर भी हैं।
इस शताब्दी के पहले देशक में जब आर्य समाज' स्यालकोट अस्पृश्य समझी जानेवाली मेघ जाति के उद्धार का प्रयास कर रहा था और आर्य मेघोद्धार सभा” की स्थापना हो रही थी, उसी समय प्रेमचन्द जी ने अपने उर्दू उपन्यास 'जलवा-ए-ईसार' (वरदान) में इस समस्या को उठाया था। अतः यह स्पष्ट है कि प्रेमचन्द जी इस समस्या के विवेचन में भारतीय राजनीति में गांधी जी के आगमन से पहले ही लगे हुए थे। इस विषय में उन पर प्रथम और प्रबल प्रभाव आर्यसमाज का ही था।
शकरगढ़ के आर्य सज्जनों में धर्म-प्रचार के लिए इतना उत्साह था, कि कुछ वर्ष पश्चात् समीप के दूबोचक, खानेवाल, नूरकोट, नेनेकोट, बारामंगा, कंजरूड़, सुखौचक्र और इखलासपुर आदि में भी आर्यसमाज स्थापित हो गये और गुरुदासपुर जिला वैदिक धर्म का सशक्त केन्द्र बन गया । मेघों की शुद्धि में भी इस जिले के आर्य समाजो का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। गुरुदासपुर जिले के श्रीगोविन्दपुर नगर, घरोटा का पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा के इतिहास में विशिष्ट स्थान रहा है।
भगत मुंशीराम : भगत मुंशीराम का जन्म सियालकोट के सुंदरपुर गांव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम महंगा राम जी था। माताजी का नाम करमां देवी था। बाबू गोपीचंद भगत इनके साला थे। देश के बंटवारे के बाद ये भी भारत में आ गए और मुक्तसर में रहे। बाद में चंडीगढ़ में बस गए। ये परम दयाल के शिष्य बनाकर मानवता मंदिर होशियारपुर में रहे। 1981 में परिनिर्वान प्राप्त किया।
संतराम बी.ए. : संतराम बी. ए. (1887-1988) भी पंजाब के प्रसिद्ध आर्य समाजी थे। उनका परिवार भी मेघ समाज से था। "मेरे जीवन के अनुभव" में वे लिखते है कि उनके वंश के लोग एक जगह जाकर कुम्हार का कार्य करने लग गए तो वे कुम्हार कहे जाने लगे। उनके पिताजी मिट्टी के बर्तन बेचते थे। संतराम जी आर्य समाजी थे। आर्य समाजी जाति व्यवस्था नहीं मानते और न वे जाति का प्रयोग करते थे। संतराम जी ने अपनी पुत्री का भी अंतर्जातीय विवाह किया। उनकी पुत्री गार्गी चड्ढा ने दिनांक 13 मार्च 1990 को डॉ. आर. के. क्षीरसागर को दिए गए अपने एक साक्षात्कार में बताया कि संतराम जी जाति से मेघ थे। (देखें: Dalit Movement in India and its leaders, New Delhi, 1994(2017), p 353-354)
भगत अमीचंद मेघ : सन् 1932 के आसपास स्वतंत्र-राष्ट्रीय विचारधारा के हरिजन नेताओं ने लाहौर में "अखिल भारतीय हरिजन लीग” की स्थापना की थी। इसके संस्थापक आर्य समाज से प्रभावित थे। समाज सुधारों, अंतर्जातीय विवाह, उत्तरोत्तर शिक्षा, सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता के लिए कार्य करते थे। बंगाल के हेमचंद्र नस्कर इसके अध्यक्ष और भगत अमीचंद मंत्री थे। भारत विभाजन के बाद इसका केंद्रीय कार्यालय दिल्ली में स्थानांतरित हुआ। इसकी शाखाएं जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में सक्रिय रहीं। सन् 1947 में मेघ अछूत जाति के भगत अमीचंद इसके अध्यक्ष बने। वे सन् 1952 में दिल्ली विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और कांग्रेस दल के असेम्बली में सचेतक बने। उस समय दिल्ली में चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री थे, जो भारत में पिछड़ा वर्ग आंदोलन के संस्थापकों में से एक हैं। हरिजन लीग ने अस्पृश्यता निवारण, जाति भेद मिटाने, सामाजिक-आर्थिक प्रगति, अनुसूचित जातियों की सूची में क्षेत्रीय विसंगतियां हटाने के लिए संघर्ष किया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मुहम्मद, प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और बलराज साहनी, बंबई के फादर विल्सन, ज्ञानी गुरुमुख सिंह मुसाफिर इस संस्था के संरक्षकों में से थे। अपने प्रारंभिक दौर में महात्मा गांधी और सरदार पटेल ने इसके कार्यों की प्रशंसा की थी। जगजीवन राम का अपना “दलित वर्ग संघ" था और उनके अनुयायी और वे स्वयं एक अरसे तक दलितों का नेतृत्व करते हुए सत्ता में रहे वे भी इसकी संगठन क्षमता और सक्रियता से प्रभावित थे।"
"अविभाजित पंजाब में स्वतंत्रतापूर्व इस संगठन का बड़ा . असर था। अमीरचंद कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन श्रेष्ठ कोटि के संगठन कर्त्ता थे। जिनका अम्बेडकर और जगजीवन राम लोहा मानते थे। ईसाईयों ने उन्हें बहुत प्रलोभन दिए लेकिन वे किसी भुलावे में नहीं आए। 'हरिजन' लीग के सुझावों पर दलितों के आर्थिक हितों के लिए निगम बने। इसी की पहल पर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में बी.एन. लोकुर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनी, जिसने अनुसूचित जातियों की सूची में क्षेत्रीय प्रतिबंध और जातीय पर्यायों की समीक्षा करते हुए संशोधन प्रस्तुत किए। इससे लाखों-करोड़ों दलितों को लाभ मिले। साथ ही "लोकुर समिति" ने उन जातियों के जिन्होंने अनुसूचित जातियों के लाभ-सहूलियतों को हथिया लिया है इसकी समीक्षा करते हुए सुझाव दिए। लेकिन इसका जगजीवन राम द्वारा भारी विरोध हुआ और ये सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं |” उन्होंने अंग्रेजी मासिक “हरिजन” निकाला जो कई वर्ष तक प्रकाशित हुआ।
"सन् 980 के दशक तक यह संगठन सक्रिय रहा और भगत अमीचंद के निधन के बाद इसकी गतिविधियां ठप्प हो गईं।" (आर, चन्द्रा एवं कन्हैयालाल चंचरी, आधुनिक भारत का दलित आंदोलन, नई दिल्ली, 2002, पृष्ठ 102-103)
भगत मिल्खीराम : भगत मिल्खी राम जी का गाँव गोहतपुर था, जो स्यालकोट (अब पाकिस्तान में) के पास ही था. भगत जी के दादा का नाम श्री भोलानाथ था और पिता का नाम श्री अमींचंद। माता का नाम मोहताब देवी था। उनकी एक बहन वीराँदेवी हैं। श्री मिल्खी राम जी का जन्म 12 नवंबर 1918 में हुआ। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई स्यालकोट के आर्य समाज स्कूल में हुई, फिर वे ईसाई स्कूल में पढ़े। उन्होंने डीएवी कालेज, लाहौर से 1939 में इंगलिश ऑनर्स के साथ बी.ए. किया। 1940 में उन्होंने अविभाजित पंजाब के गवर्नर के कार्यालय में क्लर्क के तौर पर करियर की शुरुआत की। भारत विभाजन के बाद 19-9-1047 को उन्होंने शिमला में सहायक के तौर पर कार्यभार संभाला। 1950 में पंजाब सरकार में मंत्री रहे पृथ्वीसिंह आज़ाद की अनुशंसा पर वे पीसीएस नामित हुए और एक्स्ट्रा असिसटेंट कमिश्नर के पद पर रहे। उसके बाद भगत जी के प्रयासों से कई अन्य मेघ भगत भी पीसीएस सेवाओं में आए।
भगत बुड्ढा मल : उनका जन्म और पालन-पोषण पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वे मेघ जाति के एक सामान्य परिवार में जन्मे थे। बहुत शिक्षित नहीं थे, लेकिन छोटी आयु में ही वे समाज सेवा के कार्य में प्रवृत्त हो गए थे। भारत में आने के बाद तो वे अमृतसर, जालंधर और चंड़ीगढ़ में समाज सेवा में सक्रिय देखा है.
मेघ गुलज़ारी लाल : अविभाजित पंजाब में 1923 में जन्मे। और मिल्ट्री में भर्ती हुए। सन 1941 में क्वेटा में पोस्टिंग रही। पंजाब भारत विभाजन के समय वे पाकिस्तान के क्वेटा में तैनात थे. तभी आर्मी ने सारे रिकार्ड सहित डिफेंस स्टाफ ट्रेनिंग कालेज में (ऊटी, तमिलनाडु) भेजा. उसके बाद उन्हें पठानकोट में तैनात किया गया था. 1949-50 में उनका स्थानांतरण पठानकोट में हुआ. 1969 में आर्मी की सेवा से निवृत्त होने के एक-दो वर्ष के बाद श्री गुलज़ारी लाल ने पंजाब शिड्यूल्ड कास्ट लैंड डिवेलपमेंट एंड फाइनेंस कार्पोरेशन, चंडीगढ़ में कार्य किया और प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर वहाँ से सेवानिवृत्त हुए।
भगत हंसराज : पंजाब के डालोवाली गाँव के हंसराज भगत और ननजवाल गाँव के जगदीश मित्र ने 1935 तक आर्यसमाज की मुहिम के तहत शिक्षा प्राप्त की और दोनों ने LLB की। मेघ जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करवाने में भगत हंसराज जी ही प्रमुख व्यक्ति थे। 1937 में उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी से चुनाव लडा और हार गए। 1945 में विधान परिषद के सदस्य नामित हुए।
हंसराज भगत मेघ समुदाय के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और नेता थे, जिन्होंने 20वीं सदी के प्रारंभिक दशकों में पंजाब और जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में मेघ समाज के उत्थान और उनके राजनीतिक अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। विशेष रूप से, उन्होंने मंगतुराम मंगोवालिया जैसे अन्य दलित नेताओं के साथ मिलकर 1933 में फ्रेंचाइजी कमेटी के समक्ष वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) की पैरवी की, जो उस समय ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत भारत में राजनीतिक सुधारों का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। उनकी गतिविधियाँ मुख्य रूप से मेघ समुदाय की सामाजिक, शैक्षिक, और राजनीतिक स्थिति को बेहतर बनाने पर केंद्रित थीं। उनकी यह मांग मेघवाल समुदाय को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करने और उनकी आवाज़ को मजबूत करने का एक प्रयास था। इसके अलावा, उन्होंने कबीरपंथ के माध्यम से मेघवाल समुदाय में सामाजिक जागरूकता, शिक्षा, और एकता को बढ़ावा दिया। हालांकि उनके कार्यों का दस्तावेजीकरण सीमित है, मेघवाल समुदाय में उनकी भूमिका को सामाजिक और राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए एक प्रेरणा के रूप में याद किया जाता है। देश की आजादी के बाद वे दिल्ली आ गए और वकालत शुरू की।
बाबू गोपीचंद : सियालकोट के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और अंडोलनकारी थे। आजादी से पहले पंजाब (पाकिस्तान) में चुनाव भी लड़ा था। 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, सियालकोट (तत्कालीन पंजाब, अब पाकिस्तान) से कई मेघवाल परिवार राजस्थान, विशेष रूप से अलवर, में बस गए। इन परिवारों को बंजर भूमि आवंटित की गई थी, और वे सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे थे। बाबू गोपीचंद ने इन परिवारों को संगठित करने और उनके पुनर्वास में मदद की। बाबू गोपीचंद मेघवाल समुदाय के एक प्रेरणादायक नेता थे, जिन्होंने अलवर में मेघवालों के सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका सबसे बड़ा योगदान विभाजन के बाद मेघवाल परिवारों का पुनर्वास, शिक्षा का प्रसार, और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देना था। उन्होंने आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन को मेघवाल समुदाय से जोड़कर उनकी धार्मिक और सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने में भी मदद की। हालांकि उनके कार्यों का दस्तावेजीकरण सीमित है, लेकिन मेघवाल समुदाय में उनकी भूमिका को आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है।
भारत विभाजन के बाद सेटेलमेंट मंत्रालय में एडवाइज़र सुश्री रामेश्वरी नेहरू, भगत हंसराज, श्री दौलत राम (मेघ), भगत गोपीचंद और भगत बुड्ढामल सभी ने समन्वित प्रयास किया और स्यालकोट से भारत में आए मेघों को अलवर (राजस्थान) आदि जगहों पर ज़मीनें दिला कर बसाया गया. भगत हंसराज राजनीतिक रूप से सक्रिय थे, श्री दौलत राम सेटेलमेंट ऑफिसर थे. इस टीम ने बहुत अच्छा कार्य किया और सफल रही.
मंगत राम भगत (आईएएस) : "Our Pioneers" में मंगत राम भगत का उल्लेख प्रमुखता से है, जो जम्मू-कश्मीर के पहले मेघवाल आईएएस अधिकारी थे। उन्होंने हरिजन मंडल के गठन और सामाजिक सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह संदर्भ हंसराज भगत जैसे अन्य मेघवाल नेताओं के कार्यों को समझने के लिए एक व्यापक पृष्ठभूमि प्रदान करता है।
भगत विरुमल : दबलीवाला के वीरूमल जी भ
लेखराज भगत: लेखराज भगत का जन्म सन 1930 में सियालकोट के पतन गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सियालकोट में ही हुई। जब वे दसवीं में थे तब 1947 में भारत का विभाजन हुआ और उनका परिवार भारत में आ गया और जालंधर कैंप में रहे। जम्मू कश्मीर में मेघों के वर्णन के समय मैंने ढीढे कलां का जिक्र किया था, जहां मेघों में जागृति आई और आंदोलित हुए। उसी ढीढ़े कलां में लेखराज जी का ननिहाल था। भारत में आने के बाद 1964 में इनका आईपीएस में चयन हुआ।
The country lying between the Ravi and Satlej is Trigartta or Traigartta-desa, the land watered by three rivers, which are the Ravi, the Bias, and the Satlej. Similarly the district lying between the Ravi and the Chenab is called Dogardes or Dogarttordesa, the land watered by two rivers. The name of Trigartta is found in the Mahabharata and in the Purans, as well as in the Raja Tarangini or history of Kashmir. It is also given as synonimous of Jalandhar by Hema Chandra(ASI REPORTS for the year 1872-1873, vol 5, p 148)
रावी और सतलुज नदियों के बीच स्थित क्षेत्र को त्रिगर्त या त्रिगर्त-देश कहा जाता है, जो तीन नदियों से सिंचित भूमि है, रामवी., व्यास और सतलुज हैं। इसी प्रकार रावी और चेनाब के बीच स्थित क्षेत्र को डोगर्त या दुग्गर-देश कहा जाता है, जो "दो नदियों से सिंचित भूमि है।" त्रिगर्त का नाम महाभारत और पुराणों में, साथ ही राजतरंगिनी या कश्मीर के इतिहास में भी मिलता है। हेमचंद्र इसे जालंधर का पर्यायवाची कहा है।
इस क्षेत्र में मुक्तेश्वर का मंदिर रहा है, मुक्तेश्वर को मेघों का पूर्वज कहा गया है अर्थात यहां के मेघ प्राचीन कल में अपने को मुक्तेश्वर का पूर्वज मानते थे (ASI four reports, vol 2, p 8-12)। त्रिगर्त और द्विगर्त या डुग्गर में प्राचीन काल से ही मेघों की सघन बस्तियां रही है और वर्तमान में भी इनकी सघन आबादी इन्हीं क्षेत्रों में निवास करती है। सतलज का प्राचीन नाम मेगाद्रु था अर्थात मेघों की नदी और जिसे आज व्यास नदी कहते है, इसका नाम भी महाभारत के वर्णन के अनुसार यहां निवास करने वाले बाही और हिका नाम के असुर के कारण बाहिका था। बाहिका नाम ही आगे जाकर व्यास नाम में बदल गया। महाभारत के समय सियालकोट का राजा बाहिक था। यहां के मेघ उस समय बाल्हिका या बाह्लीक कहे जाते थे और त्रिगर्त क्षेत्र के नाम से त्रि गर्ता भी कहे जाते थे। कश्मीर के राजा शंकरवर्मन के समय तक यहां उनका ही शासन था और उनका स्वतंत्र गण हुआ करता था।
आर्य समाज के कार्यों से जम्मू, गुरुदासपुर, मुलतान, फीरोजपुर, सियालकोट, शिमला, लाहौर, लुधियाना, किस्टवार, मीरपुर, बटाला और रामसू के मेघों में जागृति आई। महात्मा गांधी तथा काँग्रेस द्वारा संचालित हरिजन आन्दोलन के कारण बाद में इनके कार्ये में कुछ शिथिलता आने लग गयी थी । लोग गांधीजी के हरिंजन आन्दोलन की ओर अधिक आकर्षित होने लगे।
गुरदासपुर में पंडित रामभज दत्त ने शुद्धि कर मेघों का आर्य समाज में प्रवेश कराया।
होशियारपुर में भी शुद्धि का अभियान चला और मेघ आर्य समाजी बने।
लाहौर में भी आर्य शुद्धि का अभियान चला और वहां पर मेघ सभा का गठन हुआ। लाहौर में रावी नदी के किनारे डिप्रेस्ड क्लासेज मिशन की ओर से एक बहुत बड़ा प्लॉट खरीदा गया और सेंट्रल स्कूल शुरू की गई।
वसिष्ठ जाति : सिन्ध में "वसिष्ठ" नाम की एक अछूत जाति का निवास था। उस समय सिन्ध भी पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा के क्षेत्र में था। उसके तत्त्वावधान में सन् 1911 में खैरपुर नाथनशाह गाँव में वसिष्ठों की शुद्धि करायी गयी, जिसके कारण ऊँचे कुलों के हिन्दुओं ने आर्यों का बहिष्कार कर दिया। एक शुद्ध हुए वसिष्ठ का यज्ञोपवीत उतारकर फेंक दिया गया और उसके शरीर पर गरम लोहे से यज्ञीपवीत अंकित कर दिया गया। पर इससे वसिष्ठों की शुद्धि एवं उद्धार के आन्दोलन को रोका नहीं जा सका। पण्डित भक्तराम ने मीरपुर (सिन्ध) के क्षेत्र में 46 गाँवों के वसिष्ठों की शुद्धि की। इस प्रकार सिन्ध में जो वसिष्ठ शुद्धि द्वारा "आर्य" बना लिये गये, उनकी संख्या दस हजार के लगभग थी। (आर्य समाज का इतिहास, पृष्ठ 118)
बीसवीं सदी के दूसरे दशक तक पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा चार क्षेत्रों में दलितोद्धार का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया था, मुजफ्फरगढ़ और मुलतान में ओडों तथा मोहतमो की शुद्धि का, जालन्धर और लुधियाना में रहतियों की शुद्धि का, सिन्ध में वसिष्ठो की शुद्धि का और गुरुदासपुर में डूमनों की शुद्धि का। पर अछूतों को शुद्ध कर हिन्दू (आय) समाज का अंग बना लेने का कार्य इन्हीं क्षेत्रों व जातियों तक ही सीमित नहीं रहा। मेघों की भी शुद्धि का अभियान चला।
बटोहरा : अखनूर से चार मील की दूरी पर बटौहड़ा की बस्ती है। वहाँ के मेघों ने महाशय रामचंद्र जी को पाठशाला स्थापित करने के लिए निमन्त्रित किया। 13 जनवरी 1923 को उन्हें देखकर राजपूत लोग भड़क गये और उन्होंने लाठियाँ लेकर मेघों पर हमला कर दिया, लेकिन वे इससे घबराये नहीं। उन्होंने 14 जनवरी, 1923 को पाठशाला खोलने का दिन नियत कर दिया, और उसके लिए लाहौर से एक उपदेशक भी बुला लिया। स्कूल खुला, लेकिन महाशय रामचंद्र की शहादत हो गई। जम्मू कश्मीर के मेघों के इतिहास के प्रसंग में इसका उल्लेख कर दिया गया था।
जम्मू, बुटहरा, बरकतपुर और ऊधमपुर आदि स्थानों पर उन्हीं दिनों ऐसी पाटशालाएं खोली गयीं, जिनमें अछूत जातियों के बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था थी।
पंजाब के मेघ
Various Sabhas and Mandals :
It is difficult to trace all of the Dalitodhar Sabhas and Mandals working in this direction but the following have been mentioned :
(1) Meghoddhar Sabha, Sialkot, established on 3rd March, 1903.
(2) Dayanand Dalitoddhar Sabha, Guru Dutt Bhawan, Lahore, established on 11 May, 1930.
(3) Amritsar Achhutoddhar Sabha.
(4) Arya Dalitsabha. Dinanagar.
(5) Lahore Megh Sabha. काशीराम इसके प्रधान और मोहनलाल मंत्री थे। 5 मार्च 1933 को इसका एक बड़ा सम्मेलन लाहौर में वैद्य काशीराम जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।
(6) Achhutoddhar Sabha, Lakhimpur.
(7) Ashprishyata Nivarak Samiti, Allahabad.
(8) Achhutoddhar Samiti, Meerut.
(9) Ashprishyata Nivaran Sangh, Behar.
(10) Achhut Sewak Mandal.
(11) The Depressed Classes Mission Society of India.
(12) All India Shraddhanand Dalitoddnar Sabha Delhi.
(RADHEY SHYAM PAREEK, Contribution of Arya Samaj in the Making of Modern India, 1875-1947, THESIS APPROVED FOR THE DEGREE OF Ph. D. BY THE UNIVERSITY OF RAJASTHAN, JAIPUR, 1965
]
Reference:
- The Modern Review, Vol-8 (July-December), 1910, p 228
- Man In India Vol.3, March-June, 1923, P 71
-Pt. Gangaprasad Upadhyay, THE ORIGIN, SCOPE AND MISSION OF THE ARYA SAMAJ, 1940, p 125-126 & C)
LAJPAT RAI, THE ARYA SAMAJ, 1915, p 230)
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