मेघ और नाग जनजाति:
"प्राचीन भारत के शासक नाग: उनकी उत्पत्ति और इतिहास" नामक एक जातीय विश्लेषणात्मक शोध प्रबंध में डॉक्टर नवल वियोगी, जो कि निदेशक रहे हैं भारतीय राष्ट्रीय ऐतिहासिक अनुसंधान समिति के, ने इस पुस्तक की भूमिका में 'मेघ'जाति का जिक्र किया है और नागों की उत्पत्ति का जिक्र करते हुए उन्होंने पुस्तक के पृष्ठ संख्या 7 पर यह लिखा है के "यह बात मुख्यतः ध्यान में रखने की है कि तक्षक या टाक जनजाति ने आदिवासी खून से संबंधित अनेक जातियों को जन्म दिया है, जिनमें रजक, महार, कुर्मी, मराठे, मेघ (कोली), भार व अनेक राजपूत जातियां प्रमुख हैं।"
उनके शोध प्रबंध से यह स्पष्ट होता है कि मेघ जाति का संबंध तक्षक कही जाने वाली जनजाति से रहा है, जो कि प्राचीन भारत का एक शासक वर्ग था एवं जिसे एक नाग जनजाति माना जाता है। मेगस्थनीज व एरियन की इंडिका में मेघों का वर्णन 'मेगलाई' अथवा मेगला/मेग के नाम से हुआ है, जिसका उल्लेख सिकंदर के आक्रमण के प्रसंग में हुआ है और मेग/मेघ गणराज्य के राजा की सेना में 500 हाथियों की सेना का भी जिक्र उन्ही पुस्तकों में मिलता है। इस प्रकार से नवल वियोगी का मेघों के बारे में यह निष्कर्ष ऐतिहासिक रूप से पुष्ट होता है।
प्रस्तुत पुस्तक के अध्याय 5 में 'संघ व्यवस्था की उत्पत्ति एवं गणसंघ' के प्रसंग में नाग जनजाति के शासकीय और प्रशासकीय ढांचे का जिक्र करते हुए गण पद्धति का उल्लेख किया है। सिंधु घाटी में बुनकर, तथा रंगरेज के उद्योग धंधों के प्रसंग में यह बताया गया है कि पंजाब में बुद्धकाल से पूर्व मेघ और टका जातियां कपड़े के व्यवसाय में संलग्न हो गयी थी। मेघ बुनकरी में व टका कपड़े रंगने व धोने यानी सजाने का काम करते थे। पुस्तक के पृष्ठ 132 पर लेखक ने यह गवेषित किया है कि 'ऐसा लगता उपर्युक्त विभाजन पंजाब में उस काल में हुआ जिसका वर्णन हम ऊपर कर चुके है यानी बुद्ध पूर्व काल में। यही मुख्य कारण है टका तथा मेघ (बुनकर) दोनों जातियों का भारी जमाव जम्मू के दक्षिण की पहाड़ियों में आज भी है।"
डॉ नवल वियोगी अपने इस शोध ग्रंथ टका और मेघों के विभाजन को बुद्ध के जीवनकाल अथवा उसके कुछ पहले का मानते है और उस समय मेघ मद्र के नाम से जाने जाते थे और टका लोग टका के नाम से, परंतु दोनों को ही डॉ वियोगी नाग जनजातीय तक्षक जनजाति के रूप में उल्लेखित करते है अर्थात इन्हें नाग वंशीय तक्षक मानते है। प्रस्तुत शोध प्रबंध के पृष्ठ 135 पा वे लिखते है:- "हम पिछले पृष्ठों पर बतला चुके हैं कि टका तथा मेघ अथवा मद्र रूप में विभाजन बुद्ध के जीवन काल अथवा उसके कुछ पहले हो चुका था।" वे आगे पृष्ठ 141 पर लिखते है कि " इन नागवंशीयों ने बाद के काल मे अनेक जातियों को जन्म दिया जिन्हें आदिवासी होने के कारण चौथे वर्ण में धकेल दिया। ये जातियां थीं मेघ या कोली, रजक, लिलारी, दर्जी, छीपा, भार, राजभार, मराठा, कुर्मी तथा महार आदि।"
स्पष्टतः मद्र और मेघ एक ही जातीय समूह है, ऐसी गवेषणा डॉ नवल वियोगी की इस शोध प्रबंध में की गई है। प्राचीन काल मे मेघों की शासन धुरी का उल्लेख करते हुए पुस्तक के पृष्ठ 149 पर वे लिखते है:- "मद्र अथवा मेघ- पंजाब के मध्य भाग को मद्र अथवा माझा कहा जाता है। कारण, इस क्षेत्र पर प्राचीन युगों में मद्रों का शासन था।" डॉ नवल वियोगी मद्र और मेघ को एक ही जनजाति उल्लेखित करते हुए यह स्पष्ट करते है कि प्राचीन काल की मद्र जनजाति ही आज की मेघ जाति है। पुस्तक के पृष्ठ 149-150 में 'मद्र अथवा मेघ' के उपशीर्षक के अंतर्गत इस जाति में व्याप्त रही कुछ परंपराओं का उल्लेख करते हुए उनका संबंध यादवों से भी जोड़ते है, जिनका शासन सूरसेन क्षेत्र में रहा था। अर्थात सुरसेनी और यादव भी प्राचीन मद्र जाति ही है। मद्र अथवा मेघ के प्रसंग में पुस्तक के पृष्ठ 149 में वे लिखते है:- "स्पष्ट है कि मद्र(मेघ) लोग मूलरूप में सूरसेन अथवा यादव उत्पत्ति के थे जो कि जानी पहचानी जाति थी। जिनका संबंध सिंधु घाटी सभ्यता के साथ था। कुनिन्दा भी मद्र(मेघ) जनजाति थी। पुनः पृष्ठ 150 पर स्पष्ट किया गया है कि "मद्र वैदिक काल के प्राचीन शासक दिखाई पड़ते है, जिनका नाम सामवेद की वंश ब्राह्मणों में है। वे 9वीं सदी तक सत्ता में रहे, जब हम बंगाल के राजा धर्मपाल के मित्र के रूप में मद्रों को पाते हैं, जिसने मद्रों अथवा उत्तर की अन्य शक्तियों की सहमति से इंद्र राजा को गद्दी से उतार दिया, जो पंचाल का राजा था। जायसवाल के अनुसार मद्र कुनिंदा नाम से भी जाने जाते थे।"
पुस्तक में उत्तर और मध्य भारत के नाग राजाओं के प्रसंग में भी मद्र(मेघों) का जिक्र किया गया है। कश्मीर के राजा मेघवाहन का जिक्र करते हुए उसे मेघ अथवा मेघवाल जाति का मूलपुरुष बताया गया है। शालिवाहन सातवाहनों का मूल पुरुष था तो मेघवाहन मेघ या मेघवालों का मूल पुरूष था और ये दोनों ही एक ही वंश या परिवार से थे। शोध प्रबंध के पृष्ठ 294 पर यह गवेषणा की गई है कि "मेघ अथवा मेघवाल लोगों में आज भी यह युक्ति प्रसिद्ध है कि उनका मूल पुरुष मेघवाहन था।" इस तथ्यान्वेषण से सातवाहनों और मेघों का अटूट संबंध स्थापित होता है अर्थात दक्षिण भारत के सातवाहनों का इतिहास आज के मेघों के पूर्वजों का ही इतिहास प्रमाणित होता है।
(इस संबंध में 'मेदे, मद्र और मेघ' पर मेघनेट पर प्रकाशित आलेख को देखा जा सकता है। उस आलेख की गवेषणा की डॉ नवल वियोगी के शोधप्रबंध की गवेषणा से पुष्टि होती है)
संदर्भ:
प्राचीन भारत के शासक नाग: उनकी उत्पत्ति और इतिहास,
लेखक: डॉ नवल वियोगी,
प्रकाशक: सम्यक प्रकाशक, नई दिल्ली।