किश्त : 10
हरिजन राजनीति: दलित राजनीति
-उस समय राष्ट्रीय स्तर पर हरिजन राजनीति का एक और जो प्रमुख चेहरा था, वह था: भगत अमीं चंद। भगत अमीं चंद सिंध (सिन्ध-पंजाब, वर्तमान पाकिस्तान में) का रहने वाला था और वहां वह सामाजिक व राजनैतिक आंदोलनों का अगुआ था। उस समय उसकी राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख पहचान थी। जगजीवन राम उस समय राजनीति में कदम रख रहे थे। भगत अमीं चंद मेघ जाति का था और भारत आज़ाद होने पर दिल्ली में आकर बस गया था। हरिजन राजनीति का अग्रिम होने के बावजूद भी, वह कम पढ़ा लिखा होने और अन्य कई कारणों से जगजीवनराम आदि जैसे नेताओं की तरह राष्ट्रीय राजनीति में उभर नहीं सका व जन जन में चर्चित नहीं हो सका। जब तक उसका कार्यक्षेत्र लाहौर रहा, उसका सितारा चमकता रहा। दिल्ली में भी उसका डंका बजता रहा, जवाहरलाल नेहरू, डॉ आंबेडकर और जगजीवनराम, सभी उसके ठोस तर्कों व दृढ़ इच्छा शक्ति के कायल थे।
- पंजाब के चमार और चूहड़ा लोगों द्वारा जब बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में 'आद धर्म' आंदोलन शुरू किया गया था। उत्तरी भारत में 'आदि धर्मी जाति' उसी आंदोलन की परिणीति है (अन्य विवरण 'आदि धर्मी' जाति के विवरण में देखें)। भगत अमीं चंद इस आंदोलन से भी जुड़ा। आदि-धर्म (आद धर्म) आंदोलन को शुरू करने वाले प्रमुख लोगों में मंगुराम मंगोवालिया ही थे। वह चमार थे, भगत अमीं चंद शुरुआत में इस आंदोलन में भी सक्रिय रूप से जुड़े परंतु शीघ्र ही अलग हो गए। आद धर्म आंदोलन ने सेन्सस में दलित वर्गों की जातियों के लिए 'आदि धर्म' लिखने व उसे मान्यता देने हेतु आंदोलन किया, जिसमें वे सफल रहे। उस समय वे तथा उनके साथी डॉ आंबेडकर के विचार और कार्यक्रम से इत्तिफाक नहीं रखते थे और वे बहुधा विरोध ही करते थे, हालांकि बाद में वे डॉ आंबेडकर के सामने नतमस्तक हो गए।
- जब डॉ आंबेडकर गोलमेज सम्मेलन में दलितों का पक्ष रख रहे थे, तो ये संगठन भारत मे उनके विरोध में आंदोलनरत थे। गाँधीजी के 'हरिजन सेवक संघ' से भगत अमीं चंद मेघ का 'हरिजन लीग' अलग व विशिष्ट था। उसने अपनी लीग को हरिजन सेवक संघ में नहीं मिलाया। आज भी यह संस्था कई राज्यों में कार्यरत है।
-भगत अमीं चंद और उनके साथियों ने दलित जातियों को संगठित करने व उनके उत्थान के लिए सन 1932 के आसपास अपना एक स्वतंत्र संगठन 'हरिजन लीग' के नाम से बनाया था। यह हरिजनों द्वारा 'स्वतंत्र राष्ट्रीय विचारधारा' के आधार पर गठित किया गया संगठन था और गांधी, अम्बेडकर व जिन्ना के विचारों से हटकर अपनी स्वतंत्र विचार धारा रखता था। प्रारम्भ में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद, प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वी राज कपूर और बलराज साहनी, बम्बई के फादर विल्सन, ज्ञानी गुरमुखसिंह मुसाफिर इस संस्था के संरक्षक थे। उस समय गांधी और पटेल हरिजन लीग के प्रशंसकों में प्रमुख थे। बाबू जगजीवनराम ने भी उसी समय डिप्रेस्ड क्लासेज लीग का गठन किया। वह भी इस संस्था का प्रशंसक थे व भगत अमीं चंद को मार्गदर्शक मानता था। उस समय हरिजन लीग जम्मूकश्मीर, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, उत्तरप्रदेश व अन्य कई प्रान्तों में दलित आंदोलन में सक्रिय व आगीवाण थी। बाबू जगजीवन राम इसकी सक्रियता व संगठन क्षमता से अत्यधिक प्रभावित थे। भगत अमीं चंद मेघ जिन्ना, अम्बेडकर और गांधी की आलोचना में कईं बार बहुत कटु व उग्र हो जाता था। उस समय की पत्र-पत्रिकाएं उसके व्यक्तव्यों को प्रमुखता से छापते थे।
- मेघ जाति आर्य समाज से प्रभावित थी, अतः इस संगठन पर आर्यसमाज का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव था। यह संगठन सामाजिक सुधारों, अंतरजातीय विवाह, उच्च शिक्षा व नौकरियों में प्राथमिकता के लिए कार्य करता था। शुरूआत में इसका कार्यालय लाहौर में था। बंगाल के हेमचंद्र नस्कर इसका अध्यक्ष और अमीं चंद महामंत्री था। इस संगठन की उत्तरी भारत व पूर्वी भारत में बहुत-सी शाखाएं कार्यरत थी। अमीं चंद के दिल्ली में बस जाने के साथ ही भारत विभाजन के बाद इसका कार्यालय दिल्ली शिफ्ट में कर दिया गया। सन 1947 में भगत अमीं चंद उसके अध्यक्ष बन गए। सन 1952 के चुनावों में भगत अमीं चंद मेघ. दिल्ली विधानसभा के विधायक चुने गए और विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के सचेतक रहे। उस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे, जो पिछड़ा वर्ग आंदोलन के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। इस अवधि में अमीं चंद हरिजन राजनीति में वह न केवल एक प्रमुख चेहरा था, बल्कि एक प्रभावी शख्सियत था। हरिजन लीग ने अस्पृश्यता निवारण, जातिभेद मिटाने, सामाजिक-आर्थिक प्रगति, अनुसूचित जातियों की सूची में क्षेत्रीय विसंगतियों को हटाने हेतु संघर्ष किया।
- इस संगठन की सभाओं में विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू, कृष्णा मेनन, मोरारजी देसाई, डी संजीवय्या जैसे नेता दलितों को संबोधित करने आते थे। हुमायूं कबीर, प्रो. वी के आर वी राव जैसे शिक्षाविद दलितों की शैक्षिक-आर्थिक समस्याओं पर अपने विचार प्रकट करते थे। अविभाजित पंजाब में इस संगठन का बड़ा असर था।
- भगत अमीं चंद मेघ कम पढ़ा लिखा था परंतु निडर और होशियार था, साथ ही तेज-तर्रार भगत अमीं चंद उच्च कोटि का संगठन कर्ता था। जिनका डॉ अम्बेडकर व जगजीवनराम लोहा मानते थे। वह अपने संकल्प और कार्यों के प्रति सदैव समर्पित रहा और लक्ष्य प्राप्ति के लिए हर तरह के प्रयत्न करने में कभी कमी नहीं आने देता था। ईसाईयों ने उसे धर्म परिवर्तन का बहुत लालच दिया परंतु वह उनके भुलावे में नहीं आया। जब उसे यह पता लगा कि डॉ आंबेडकर दलितों के लिए अलग देश की मांग कर रहे है (जो कि नहीं थी) तो डॉ आंबेडकर की तीव्र आलोचना करने वालों में वह एक प्रमुख दलित नेता था। ( बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के 25 वर्ष तक निजी सचिव रहे सोहनलाल शास्त्री जी ने मुझे इस संबंध में कुछ घटनाएं बतायी थी, जिन्हें अन्यत्र उल्लेखित किया जाएगा)।
- दलितों के शैक्षिक और आर्थिक मुद्दों को उसने प्रमुखता से उठाया था और हरिजन लीग के सुझावों पर ही दलितों के आर्थिक हितों के लिए निगम बने। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य था, जिसके लिए भगत अमीं चंद सदैव याद किये जाते रहेंगे। भगत अमीं चंद की पहल पर ही प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में बी एन लोकुर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनी (देखें किश्त: 8 देखें) जिसने अनुसूचित जातियों/जनजातियों की सूची में क्षेत्रीय प्रतिबंध और जातीय पर्यायों की समीक्षा करते हुए संशोधन प्रस्तुत किये। इससे लाखों-करोड़ों दलितों को लाभ मिला।
- जिन्ना और भगत अमीं चंद, डॉ आंबेडकर और भगत अमीं चंद व जगजीवन राम व अमीं चंद के बारे में कोई तुलनात्मक कार्य हुआ नहीं है। एक प्रसंग में जिन्ना और भगत अमीं चंद दोनों थे। सन 1940-1950 के बीच जिन्ना और भगत अमीं चंद के संबंध कुछ अच्छे नहीं रहे थे (भगत अमीं चंद भारत के विभाजन के पक्ष में नहीं थे)। जिन्ना भगत अमीं चंद को देखते ही नाक-भौंह सिकोड़ने लगते, बात करना तो दूर की बात थी। एक बार मीटिंग में दोनों पहले पहुंचे। जिन्ना मुंह फेरकर बैठे तो भगत जी भी कम नहीं थे, उन्होंने कुर्सी उठाकर उनकी तरफ पीठकर बैठ के उत्तर दे दिया----!
दलित आंदोलन का ही एक चेहरा अधिवक्ता भगत हंस राज मेघ थे। वे यूनियनिष्ट पार्टी में थे और उस समय की दलित राजनीति के अग्रणीय थे। वह भी बाद में दिल्ली आ बसे ----!
- भगत अमीं चंद की राजनीति हरिजन राजनीति से दलित राजनीति पर आकर टिक , जिसे बाद में कांशीराम ने बहुजन राजनीति में बदला------
किश्त: 10 का शेष
दलित राजनीति : हरिजन राजनीति
---- भगत अमीं चंद दबंग था। जगजीवनराम भी दबंग थे। भगत अमीं चंद पहले पृथ्वी सिंह आज़ाद 【बाबा पृथ्वी सिंह आजाद (1892-1989) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे। वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे। सन 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया】 के साथ भी कार्य कर चुका था, जो गद्दार पार्टी से जुड़ा था। भगत अमीं चंद की निडरता का पक्ष व अधिकारपूर्वक हरिजनों के हकों की पैरवी काबिले तारीफ थी। हरिजन राजनीति का यह पक्ष उन्हें दलित राजनीति के नजदीक खींच ले लाता है। 'सोबती एक सोहबत' व 'हम हशमत' में भगत अमीं चंद के इस चरित्र को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि किसी एक ग्राम में छज्जू नाम के किसी हरिजन की (अनुसूचित जाति के व्यक्ति की) जमीन पर किसी जागीरदार ने कब्जा कर लिया। इस हेतु पंचायत जुड़ी।
छज्जू अपनी बात कह रहा था कि
"वहां पंचों में में रोबदाब रखने वाले रिसालदार ने डपट दिया- 'जबान संभाल के रे छोरे।'
भगत अमीं चंद, जो हरिजनों के लीडर थे, होनहार छज्जू की इमदाद पर आये- 'पिछड़े वर्ग के लोगों से आप ऐसे नहीं बोल सकते। यह गांव की पंचायत है, चौधरियों के घर की बैठक नहीं! कान खोलकर सुन लो, हमारे सामने यह तानाशाही नहीं चलेगी।'
चौधरी रणजीत सिंह, जो गांव में अपने अक्खड़पन के लिए मशहूर थे, तैश में आ गए- 'क्या टेक पकड़ी है, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। चुप हो जाओ छजुआ!'
(एक दूसरा पंच बोला)
अमीं चंद, जबान संभाल कर बात करो, गुजर लाहिरी सिंह ने कोई पुरानी जिद निकली।
'अपने अल्फाज वापस ले लो चौधरी रणधीर सिंह, पंचायत के मेम्बरों को बुलाने का कोई ढंग होना चाहिए। ठीक से नाम क्यों नहीं ले सकते- श्रीमान छज्जू सिंह आजाद।'
इस पर पिछड़ी जाति के मेम्बरों ने तालियां बज दी, पर भगत अमीं चंद ने इस धोखाधड़ी में आने से इनकार कर दिया। बोला:
'भाईयों! यह छल-छलावा हम शदियो से देखते आये है। दिल की नफरत को सिर्फ 'श्रीमान' कहकर मिटाया नहीं जा सकता। यह याद रखिये, जल्दी ही इंकलाब होने वाला है। निजाम बदलने वाला है। भाईयों! आज की तारीख में मेरी बात गांठ बांध लो। ठाकुर, गुज्जर हम से भले नफरत करते रहे, हमारे खिलाफ जहर फैलाते रहे, पर भाईयों वह दिन दूर नहीं जब छज्जू आज़ाद जैसे नौजवान भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे।'
-----
------
लोकतंत्र अमर है।
भारतीय गणतंत्र जिंदाबाद।"
भगत अमीं चंद दिल्ली आकर बस गया। भगत अमीं चंद एक दिन बाबा साहेब की कोठी पर जाकर हरिजन राजनीति की खुद ही पोल खोल देता है, जो वह वर्षों से डॉ आंबेडकर का विरोध करके करता आया था।---
News paper cuttings 1942
हरिजन राजनीति: दलित राजनीति
-उस समय राष्ट्रीय स्तर पर हरिजन राजनीति का एक और जो प्रमुख चेहरा था, वह था: भगत अमीं चंद। भगत अमीं चंद सिंध (सिन्ध-पंजाब, वर्तमान पाकिस्तान में) का रहने वाला था और वहां वह सामाजिक व राजनैतिक आंदोलनों का अगुआ था। उस समय उसकी राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख पहचान थी। जगजीवन राम उस समय राजनीति में कदम रख रहे थे। भगत अमीं चंद मेघ जाति का था और भारत आज़ाद होने पर दिल्ली में आकर बस गया था। हरिजन राजनीति का अग्रिम होने के बावजूद भी, वह कम पढ़ा लिखा होने और अन्य कई कारणों से जगजीवनराम आदि जैसे नेताओं की तरह राष्ट्रीय राजनीति में उभर नहीं सका व जन जन में चर्चित नहीं हो सका। जब तक उसका कार्यक्षेत्र लाहौर रहा, उसका सितारा चमकता रहा। दिल्ली में भी उसका डंका बजता रहा, जवाहरलाल नेहरू, डॉ आंबेडकर और जगजीवनराम, सभी उसके ठोस तर्कों व दृढ़ इच्छा शक्ति के कायल थे।
- पंजाब के चमार और चूहड़ा लोगों द्वारा जब बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में 'आद धर्म' आंदोलन शुरू किया गया था। उत्तरी भारत में 'आदि धर्मी जाति' उसी आंदोलन की परिणीति है (अन्य विवरण 'आदि धर्मी' जाति के विवरण में देखें)। भगत अमीं चंद इस आंदोलन से भी जुड़ा। आदि-धर्म (आद धर्म) आंदोलन को शुरू करने वाले प्रमुख लोगों में मंगुराम मंगोवालिया ही थे। वह चमार थे, भगत अमीं चंद शुरुआत में इस आंदोलन में भी सक्रिय रूप से जुड़े परंतु शीघ्र ही अलग हो गए। आद धर्म आंदोलन ने सेन्सस में दलित वर्गों की जातियों के लिए 'आदि धर्म' लिखने व उसे मान्यता देने हेतु आंदोलन किया, जिसमें वे सफल रहे। उस समय वे तथा उनके साथी डॉ आंबेडकर के विचार और कार्यक्रम से इत्तिफाक नहीं रखते थे और वे बहुधा विरोध ही करते थे, हालांकि बाद में वे डॉ आंबेडकर के सामने नतमस्तक हो गए।
- जब डॉ आंबेडकर गोलमेज सम्मेलन में दलितों का पक्ष रख रहे थे, तो ये संगठन भारत मे उनके विरोध में आंदोलनरत थे। गाँधीजी के 'हरिजन सेवक संघ' से भगत अमीं चंद मेघ का 'हरिजन लीग' अलग व विशिष्ट था। उसने अपनी लीग को हरिजन सेवक संघ में नहीं मिलाया। आज भी यह संस्था कई राज्यों में कार्यरत है।
-भगत अमीं चंद और उनके साथियों ने दलित जातियों को संगठित करने व उनके उत्थान के लिए सन 1932 के आसपास अपना एक स्वतंत्र संगठन 'हरिजन लीग' के नाम से बनाया था। यह हरिजनों द्वारा 'स्वतंत्र राष्ट्रीय विचारधारा' के आधार पर गठित किया गया संगठन था और गांधी, अम्बेडकर व जिन्ना के विचारों से हटकर अपनी स्वतंत्र विचार धारा रखता था। प्रारम्भ में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद, प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वी राज कपूर और बलराज साहनी, बम्बई के फादर विल्सन, ज्ञानी गुरमुखसिंह मुसाफिर इस संस्था के संरक्षक थे। उस समय गांधी और पटेल हरिजन लीग के प्रशंसकों में प्रमुख थे। बाबू जगजीवनराम ने भी उसी समय डिप्रेस्ड क्लासेज लीग का गठन किया। वह भी इस संस्था का प्रशंसक थे व भगत अमीं चंद को मार्गदर्शक मानता था। उस समय हरिजन लीग जम्मूकश्मीर, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, उत्तरप्रदेश व अन्य कई प्रान्तों में दलित आंदोलन में सक्रिय व आगीवाण थी। बाबू जगजीवन राम इसकी सक्रियता व संगठन क्षमता से अत्यधिक प्रभावित थे। भगत अमीं चंद मेघ जिन्ना, अम्बेडकर और गांधी की आलोचना में कईं बार बहुत कटु व उग्र हो जाता था। उस समय की पत्र-पत्रिकाएं उसके व्यक्तव्यों को प्रमुखता से छापते थे।
- मेघ जाति आर्य समाज से प्रभावित थी, अतः इस संगठन पर आर्यसमाज का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव था। यह संगठन सामाजिक सुधारों, अंतरजातीय विवाह, उच्च शिक्षा व नौकरियों में प्राथमिकता के लिए कार्य करता था। शुरूआत में इसका कार्यालय लाहौर में था। बंगाल के हेमचंद्र नस्कर इसका अध्यक्ष और अमीं चंद महामंत्री था। इस संगठन की उत्तरी भारत व पूर्वी भारत में बहुत-सी शाखाएं कार्यरत थी। अमीं चंद के दिल्ली में बस जाने के साथ ही भारत विभाजन के बाद इसका कार्यालय दिल्ली शिफ्ट में कर दिया गया। सन 1947 में भगत अमीं चंद उसके अध्यक्ष बन गए। सन 1952 के चुनावों में भगत अमीं चंद मेघ. दिल्ली विधानसभा के विधायक चुने गए और विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के सचेतक रहे। उस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे, जो पिछड़ा वर्ग आंदोलन के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। इस अवधि में अमीं चंद हरिजन राजनीति में वह न केवल एक प्रमुख चेहरा था, बल्कि एक प्रभावी शख्सियत था। हरिजन लीग ने अस्पृश्यता निवारण, जातिभेद मिटाने, सामाजिक-आर्थिक प्रगति, अनुसूचित जातियों की सूची में क्षेत्रीय विसंगतियों को हटाने हेतु संघर्ष किया।
- इस संगठन की सभाओं में विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू, कृष्णा मेनन, मोरारजी देसाई, डी संजीवय्या जैसे नेता दलितों को संबोधित करने आते थे। हुमायूं कबीर, प्रो. वी के आर वी राव जैसे शिक्षाविद दलितों की शैक्षिक-आर्थिक समस्याओं पर अपने विचार प्रकट करते थे। अविभाजित पंजाब में इस संगठन का बड़ा असर था।
- भगत अमीं चंद मेघ कम पढ़ा लिखा था परंतु निडर और होशियार था, साथ ही तेज-तर्रार भगत अमीं चंद उच्च कोटि का संगठन कर्ता था। जिनका डॉ अम्बेडकर व जगजीवनराम लोहा मानते थे। वह अपने संकल्प और कार्यों के प्रति सदैव समर्पित रहा और लक्ष्य प्राप्ति के लिए हर तरह के प्रयत्न करने में कभी कमी नहीं आने देता था। ईसाईयों ने उसे धर्म परिवर्तन का बहुत लालच दिया परंतु वह उनके भुलावे में नहीं आया। जब उसे यह पता लगा कि डॉ आंबेडकर दलितों के लिए अलग देश की मांग कर रहे है (जो कि नहीं थी) तो डॉ आंबेडकर की तीव्र आलोचना करने वालों में वह एक प्रमुख दलित नेता था। ( बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के 25 वर्ष तक निजी सचिव रहे सोहनलाल शास्त्री जी ने मुझे इस संबंध में कुछ घटनाएं बतायी थी, जिन्हें अन्यत्र उल्लेखित किया जाएगा)।
- दलितों के शैक्षिक और आर्थिक मुद्दों को उसने प्रमुखता से उठाया था और हरिजन लीग के सुझावों पर ही दलितों के आर्थिक हितों के लिए निगम बने। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य था, जिसके लिए भगत अमीं चंद सदैव याद किये जाते रहेंगे। भगत अमीं चंद की पहल पर ही प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में बी एन लोकुर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनी (देखें किश्त: 8 देखें) जिसने अनुसूचित जातियों/जनजातियों की सूची में क्षेत्रीय प्रतिबंध और जातीय पर्यायों की समीक्षा करते हुए संशोधन प्रस्तुत किये। इससे लाखों-करोड़ों दलितों को लाभ मिला।
- जिन्ना और भगत अमीं चंद, डॉ आंबेडकर और भगत अमीं चंद व जगजीवन राम व अमीं चंद के बारे में कोई तुलनात्मक कार्य हुआ नहीं है। एक प्रसंग में जिन्ना और भगत अमीं चंद दोनों थे। सन 1940-1950 के बीच जिन्ना और भगत अमीं चंद के संबंध कुछ अच्छे नहीं रहे थे (भगत अमीं चंद भारत के विभाजन के पक्ष में नहीं थे)। जिन्ना भगत अमीं चंद को देखते ही नाक-भौंह सिकोड़ने लगते, बात करना तो दूर की बात थी। एक बार मीटिंग में दोनों पहले पहुंचे। जिन्ना मुंह फेरकर बैठे तो भगत जी भी कम नहीं थे, उन्होंने कुर्सी उठाकर उनकी तरफ पीठकर बैठ के उत्तर दे दिया----!
दलित आंदोलन का ही एक चेहरा अधिवक्ता भगत हंस राज मेघ थे। वे यूनियनिष्ट पार्टी में थे और उस समय की दलित राजनीति के अग्रणीय थे। वह भी बाद में दिल्ली आ बसे ----!
- भगत अमीं चंद की राजनीति हरिजन राजनीति से दलित राजनीति पर आकर टिक , जिसे बाद में कांशीराम ने बहुजन राजनीति में बदला------
किश्त: 10 का शेष
दलित राजनीति : हरिजन राजनीति
---- भगत अमीं चंद दबंग था। जगजीवनराम भी दबंग थे। भगत अमीं चंद पहले पृथ्वी सिंह आज़ाद 【बाबा पृथ्वी सिंह आजाद (1892-1989) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे। वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे। सन 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया】 के साथ भी कार्य कर चुका था, जो गद्दार पार्टी से जुड़ा था। भगत अमीं चंद की निडरता का पक्ष व अधिकारपूर्वक हरिजनों के हकों की पैरवी काबिले तारीफ थी। हरिजन राजनीति का यह पक्ष उन्हें दलित राजनीति के नजदीक खींच ले लाता है। 'सोबती एक सोहबत' व 'हम हशमत' में भगत अमीं चंद के इस चरित्र को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि किसी एक ग्राम में छज्जू नाम के किसी हरिजन की (अनुसूचित जाति के व्यक्ति की) जमीन पर किसी जागीरदार ने कब्जा कर लिया। इस हेतु पंचायत जुड़ी।
छज्जू अपनी बात कह रहा था कि
"वहां पंचों में में रोबदाब रखने वाले रिसालदार ने डपट दिया- 'जबान संभाल के रे छोरे।'
भगत अमीं चंद, जो हरिजनों के लीडर थे, होनहार छज्जू की इमदाद पर आये- 'पिछड़े वर्ग के लोगों से आप ऐसे नहीं बोल सकते। यह गांव की पंचायत है, चौधरियों के घर की बैठक नहीं! कान खोलकर सुन लो, हमारे सामने यह तानाशाही नहीं चलेगी।'
चौधरी रणजीत सिंह, जो गांव में अपने अक्खड़पन के लिए मशहूर थे, तैश में आ गए- 'क्या टेक पकड़ी है, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। चुप हो जाओ छजुआ!'
(एक दूसरा पंच बोला)
अमीं चंद, जबान संभाल कर बात करो, गुजर लाहिरी सिंह ने कोई पुरानी जिद निकली।
'अपने अल्फाज वापस ले लो चौधरी रणधीर सिंह, पंचायत के मेम्बरों को बुलाने का कोई ढंग होना चाहिए। ठीक से नाम क्यों नहीं ले सकते- श्रीमान छज्जू सिंह आजाद।'
इस पर पिछड़ी जाति के मेम्बरों ने तालियां बज दी, पर भगत अमीं चंद ने इस धोखाधड़ी में आने से इनकार कर दिया। बोला:
'भाईयों! यह छल-छलावा हम शदियो से देखते आये है। दिल की नफरत को सिर्फ 'श्रीमान' कहकर मिटाया नहीं जा सकता। यह याद रखिये, जल्दी ही इंकलाब होने वाला है। निजाम बदलने वाला है। भाईयों! आज की तारीख में मेरी बात गांठ बांध लो। ठाकुर, गुज्जर हम से भले नफरत करते रहे, हमारे खिलाफ जहर फैलाते रहे, पर भाईयों वह दिन दूर नहीं जब छज्जू आज़ाद जैसे नौजवान भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे।'
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लोकतंत्र अमर है।
भारतीय गणतंत्र जिंदाबाद।"
भगत अमीं चंद दिल्ली आकर बस गया। भगत अमीं चंद एक दिन बाबा साहेब की कोठी पर जाकर हरिजन राजनीति की खुद ही पोल खोल देता है, जो वह वर्षों से डॉ आंबेडकर का विरोध करके करता आया था।---
News paper cuttings 1942