सियालकोट के मेघ:
(See Reference: Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab)
मेघ:
मेघ, मिहङ्गः : सियालकोट और जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में निवास करते है। वे अमृतसर, गुरदासपुर, लाहौर और गुजरात में भी निवास करते है। रावलपिंडी में उन्हें मेंग कहते है।
सियालकोट के मेघ अपनी उत्पत्ति की निम्न कथा बताते है:
प्राचीन काल में उनका पुरखा, जो कि ब्राह्मण था, काशी/बनारस में रहता था। उसके दो लड़के थे। एक पढ़ा-लिखा विद्वान पंडित था और दूसरा निरा-अनपढ़। उसने बड़े लड़के को छोटे लड़के को पढ़ाने का बोला। लेकिन बड़े लड़के ने अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। इस पर पिता ने क्रोधित होते हुए बड़े लड़के को घर से बाहर निकाल दिया। वह लड़का घर से निकलकर जम्मू रियासत के उत्तर दिशा में जा बसा और वहां पर अपने पूर्वजों की तरह ही बच्चों को पढ़ाने लगा। इसके साथ-साथ वह यज्ञ-हवन भी संपादित करने लगा। एक बार वह यज्ञ कर रहा था तो उसके मंत्र गाय को पुनर्जीवित करने में असफल हो गए। तब लोगों ने उसे अविश्वास और घृणा-भरी नजर से देखना शुरू कर दिया। तब उसके पिता को बुलाया गया, जिसके मंत्रों से गाय जीवित हो गयी। उस समय उसके पिता ने उसके साथ खान-पान करने से मना कर दिया, लेकिन वचन दिया कि कुछ समय बाद वह इस इस बंदिश को खत्म कर देगा, लेकिन पुत्र बाद क्रोधित हुआ और पिता से सब प्रकार के संबंधों को त्याग दिया और एक नई जाति का जन्मदाता बना, उसके वंशज मिहङ्गः पुकारे गए। (ये सब एक ही है, स्थान विशेष के कारण थोड़ा उच्चारण भेद होने से भेद लगता है, अन्यथा शब्द और इन नामों से जानी वाली जाति एक ही है, मिहङ्गः=मिंग=मेंग=मेग)
यह सवाल किया गया कि वेद में शुतुद्रु नदी का जिक्र कहाँ है?
तुरंत संदर्भ के लिए यह ऋग्वेद के 10वें मंडल के 75 सूक्त का 5वां मंत्र दे रहा हूँ।
मेरे शोध आलेख 'मेघ: लोक वार्ताएं और वैदिक पुराकथा' में मैंने उल्लेख किया था कि ऋग्वेद में सतलज को शुतुद्री कहा गया है, इसे ही मेगाद्रु और मेगाद्री कहा गया है। शत यानी सैकड़ों, बहुत सी धाराओं वाली, अद्रु यानी जल । अर्थात जल की सैकड़ों धाराओं वाली नदी। इसे ही अन्यत्र मेगाद्रु कहा गया अर्थात मेगों की नदी। बाद में इसे सतलज कहा गया।
स्पष्ठ यह है कि एलेग्जेंडर के समय सतलज नदी के बाशिंदे मेघ ही थे, जिन से पुरु के नेतृत्व में सिकंदर से युद्ध हुआ। मेघों के यहां सघन रूप से निवास करने और आधिपत्य होने से ही इस नदी को मेगाद्रु कहा जाता था। इस में कोई संशय नहीं होना चाहिए।
प्राचीन भूगोल वेत्ताओं ने सतलज को ही मेगाद्रु कहा है यानी कि शुतुद्रु /मेगाद्रु का ही आधुनिक नाम सतलज है, जो मेघों की मूल जीवन दायिनी नदी है।🙏🙏
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