हरवंश मेघ अबोहर पंजाब मेघवंश इतिहास

Thursday, December 29, 2016

🙏🏼जय मेघ          जय भीम🙏🏼
हरबंश मेघ पंजाब मेघवंश इतिहास
 
           ऋग्वेदनुसार समाज चार वर्णो में विभाजित था ,संभवतय इन्ही वर्णो से  विशेष संगठन, जाति के रूप में परिवर्तित हुए. १३७५ विक्रमी से १७०० विक्रमी हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ काल माना गया   है ,कुछ रामनुआयियों ने सर्गुण भक्ति का समर्थन कर राम की उपासना पर बल दिया ,जातिविहीन समाज की कल्पना कर "जाति पाती पूछे नाही  कोय , हरि का भजै सो हरि का होय" पर बल दिया .
                                                              निर्गुण भक्ति के प्रवर्तक नानक, दादूदयाल, मलूकदास एंव प्रमुख रूप से कबीर साहेब ने अध्यात्मक रूप से समाज को चेतन कर जातीय दंश से मुक्त   करने की कोशिश की. लेकिन शनै: शनै:समाज में जातीय वयवस्था की जड़ें गहरी होती गई . ब्रिटिश शासन     काल में भारत में ११०८ जातियां सूचीबद की गईं.
                                                              भारत के संविधान  में बाबा साहिब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भारत के प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की सरंचना कर समाज में समानता का  संवैधानिक विकल्प खोजा.लेकिन समाज जातीय प्रथा से निज़ात नहीं पा सका.
                                                              अन्य बहुत सी जातियों की तरह समाज की अति सम्मानीय लेकिन पूर्णत:   अपना मूलस्वरूप   खो चुकी मेघ जाति की पहचान, मान-सम्मान एंव उत्थान के लिए लम्बे समय से प्रयास किये जा रहे हैं , पंजाब में कुछ उत्साही नौजवानों के सहयोग से " भगवान श्री मेघऋषि सेवा समिति " गठित कर अबोहर शहर के इर्द गिर्द गावों में मेघ समाज को जागृत करने की कोशिश की गईं . यह मिशन उस वक्त   के एक मात्र  उपलब्ध साहित्य " मेघवंश इतिहास " रचित स्वामी गोकुल दस  महाराज पर आधारित था
मेघवंश इतिहास की रचना स्वामी गोकुल दास जी रूपी मेघसपूत ने सम्भवत: १९६० ईस्वी में की . वैज्ञानिक एंव अध्यात्मक   दृष्टि   से रचित इस  दुर्लभ साहित्य   को बेशक   गंभीरता    से नहीं लिया .लेकिन व्यक्तिगतरूप       से मेरा मानना है के  विभिन्न   उपजातिओं एंव विभिन धारणाओं में बंटे अगर मेघवंश को संगठित   करना है तो "मेघवंश इतिहास" को आधार बनाना ही होगा,
                                                                           ' वैज्ञानिक सृष्टि वर्णन'       
आज से अरबों साल पहले हमारा यह सूर्य     धधकती हुई महा विशाल ज्वालाओं का महापुंज था और इस अनन्त       आकाश में महा वेग से चक्कर     लगता रहा फिर धीरे धीरे चारों तरफ से जैसे जैसे    ठंडा होने लगा जैसे जैसे  इसमें से टुकड़े होकर इस सूरज के चारों और घूमने लगे, यह टुकड़े इसके ग्रह कहलाते हैं इन्ही में से एक हमारी पृथ्वी है.
आरम्भ में जब पृथ्वी पर समुन्दर बने और उन समुंद्रों में वर्षा का पानी बह कर आने लगा तो उस पानी के साथ पृथ्वी से चिप्पट और पर्बत शिलाओं   का चूर्ण भी काट छिल कर आने लगा . इस कूड़ा कर्कट के निरंतर   मिलते रहने से समुन्दर का पानी खारी हो गिया और उसमे लोहा,चूना, गंधक आदि पदार्थ मिल गए जिससे समुन्दर जल में जीवन
   के सभी तत्व इकठ्ठे ही गए. इस प्रकार संभवतया जीवन का उदय हुआ.
                                                  "ऋषियों की उत्पत्ति और मेघवंश जाति का निकास "
ऋषियों की उत्पत्ति और उनकी वंशावली स्मृृतिओं और पुराणों में विस्तार से लिखी हुई है ,सृष्टि के आदि में श्री नारायण, नारायण   के नाभि कमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा ने सृष्टि रचने की इच्छा से सनक, सनन्दन,सनातन, संतकुमार इन चारों ऋषियों   को उत्पन किया लेकिन यह चारों नैष्टिक   ब्रह्मचारी   रहे फिर ब्रह्मा ने दस  मानसी पुत्रों को उत्पन्न   किया.
                                                          मरीचि,अत्रि,अंगिरा,पुलस्त्य,पुलह,क्रतु,भृगु,वशिष्ट,दक्ष,नारद,| ब्रह्मा ने अपने शरीर   के दो खण्ड  कर के दाहिने भाग से स्वायम्भुव मनु ( पुरुष  ) और बाम भाग से स्तरूपा ( स्त्री ) को उत्पन किया करके मैथुनी सृष्टि आरम्भ की. स्वायम्भुव मनु स्तरूपा से २ पुत्र- उत्तानपाद और प्रियव्रत तथा आकुति,प्रसूति,देवहूती ये ३ कन्याएँ उत्पन हुई, उत्तानपाद के ध्रुव पैदा हुआ .
                                                           प्रियव्रत ने कर्दम की पुत्री  प्रजावती से १० लड़के आग्निरध,मेधातिथि,वपुष्मान, ज्योतिष्मान ,और धीउतिमान,भवय और सवन. इनके अतिरिक्त मेधा , अग्निबाहु,और मित्तर ये तीनो नैष्ठिक ब्रह्मचारी होकर बन में तपस्या  करने चले गए, सो  राजा प्रियव्रत  ने सातों द्वीपों का राज्य सातों पुत्रों को दे दिया.
ब्रह्मा जी के दूसरे पुत्र
अत्रि ऋषि ,अत्रि ऋषि अनुसूया के ब्रह्मा ,विष्णु,महेश के वचन से दत्तात्रेय,दुर्वासा, और चन्द्रमा ये तीन पुत्र हुए | अत्रि ऋषि के चन्द्रमा (सोम) इनसे चन्द्रवंश चला |चन्द्रमा के बृहस्पति ,बृहस्पति के बुध ,बुध के पुरुरवा ,पुरुरवा के आयु ,आयु के नोहास( नहुष ) इनके सात पुत्र यति ,ययाति,संयाति,उदभव,पचि,सर्याेति,और मेघजाति .
                                                                          ययाति के यदु ,इनसे यदुवंश चला.ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि श्रद्धा से चार कन्यायें सिनीवाली,कुहू,राका,अनुमिति और दो लड़के उतथ्य और बृहस्पति पैदा हुए. ब्रह्मा जी के पुत्र वशिष्ट ऋषि की अरुंधति, नामक स्त्री से मेघ, शक्ति आदि १०० पुत्र और ऊर्चा नामक स्त्री से ७ पुत्र चित्रकेतु,बिरजा,मित्र,उल्वण,वसु,भृध्यान,द्युमन,उत्पन्न हुए.ब्रह्मा जी के पुत्र मेघऋषि से मेघवंश चला.
                                                         शाश्त्र "पच मात्रा जंजीर "में गोरखनाथ जी ने कहा है " अलखपुरुष ले आरम थाया, आपका तन से मेघ उपाया". उन्होंने महादेव जी को मेघ बताया है, "बैठी देवी आरम थाई !अलख सामी सूरत लगाई!घर ऋषियां के जन्म धराई, जाग जाग अब मेघ सपूता, asankhya    असंख्य जुग परले बीता".
                                   पुराणों में ब्रह्मा जी पुत्र मेघऋषि का वर्णन आता है, सम्भवतया वह इन्ही के लिए आता है क्योंकि पुराणों में ही कहीं ब्रह्मा और विष्णु को शिवपुत्र बतलाये हैं तो कहीं शिव को ब्रह्मपुत्र बतलाया है तथा कहीं तीनों के एक ही पुरुष के तीन स्वरुप बतलाये  हैं जिसे निरंजन कहा गया है . स्वामी गोकुल दास जी द्वारा दिए उक्त तत्थों से मेघ एंव मेघवंश की परिभाषा को जानने में कुछ शेष नहीं रह जाता, उन्होंने स्पष्ट किया है कि मेघ एक आदिधर्म है और इस अतिपवित्र  'मेघधर्म' को मानने वाले ही मेघ,मेघवाल हैं,जो परिस्तिथिवश नाम,प्रान्त एंव विभिन विचारधाराओं में बंट गए. इस समाज का अनादि काल से मुख्य  पंथ 'अलखनामी' हैं,अर्थात वह सर्वव्यापक सत्ता जो इन आँखों से न  दिखाई देकर,केवल ज्ञान द्वारा जिसका अनुभव हो ,उस सत्ता को 'अलख' नाम से सम्बोधित किया है. उस सर्वोच्च सत्ता को निर्जन,निराकार,ज्योति स्वरूपी,अजर अमर अविनाशी,अनघड़,सत चित आनंद,सर्वत्र परिपूर्ण,आदि अनेक गुणवाचक शब्दों में वर्णित किया गया है.
                                            इस सर्वोच्च सत्ता की महिमा ब्रह्मा,विष्णु,महेश,नारद शारद,व्यास-वशिष्ट आदि तमाम देवी- देवता ऋषि मुनि संत-महात्मा,ज्ञानी-ध्यानी,योगी,यति,दादु,कबीर,नानक,रैदास,रणसी खिवण,रामदेव जी,गौरख मछंदर,भरथरी,आदि ने अपने-अपने अनुभव कि आधार पर अलख को परम आराध्य का लक्ष्य करके मुक्त कंठ से की है.
                                                स्वामी गोकुल दास जी की अद्धभुत वंशावली
हर इंसान अपने वंश कि बारे में दो चार पीढ़ीयों की जानकारी रखता है लेकिन स्वामी जी ने आदि से वर्तमान तक वंशावली का विवरण उपलब्ध करवा कर अपनी  दूरदृष्टिेता   का लोहा मनवाया है.उन्होंने अपनी वंशावली को इस तरह प्रस्तुत  किया है:
१ आदि नारायण २   ब्रह्मा ३  अत्रि ऋषि ४ समुन्दर ५ सोम(चन्द्रमा )इनसे चन्द्रवंश चला. ६ सालम ७ साथल ८ सोहड़ ९ हरदेव  १०बालसुर ११ सुकदेव १२ शाला १३ देवसी १४ शिवदान १५ भीमसाल १६ एडीसाल १७ सुरतान १८ देवगन १९ बिरमदेव २० बाघवीर २१ धारवा २२ मोगराव २३ लक्ष्मण भाटी क्षत्रियों से धार के पवार राजपूतों ( अग्नि वंश) से मिल गए. २४ बरसल २५ शम्बू २६ जसरुप २७ बलबीर २८ गुणपाज २९रघुनाथ ३० करमसी ३१ खींवसी ३२ जगमाल ३३ गालन ३४ किशनसी ३५ मांडण ३६ देवचंद (भागंद) ३७ मेहराम (मलसी) ये सूर्यवंशी राठौड़ चांदावत राजपूतों में मिल गए.और बलूंदा(मारवाड़ ) में जा बसे.  ३८ इसान ३९ गोपाल ४० देवराज ४१ भोपाल ४२ जगपाल ४३ आहड़ ४४ आबान ४५ आसी ४६ जेसो ४७ गाजी ४८ लालो(१) ४९ जोरजी के दो पुत्र मुकन जी  और मानसिंघ जी. जोरजी मेघवंशी चांदावत राठौड़ों के साथ गांव बलून्दा में संवत १६५२ में जूंझार हुए .जिनकी तलाब के पाल पर  देवली है.और उनके वंशज भुगानपुरा में जा बसे. मान  सिंह के ३ पुत्र थे भगवान,आसल एंव ऊदा .  भगवान के दो पुत्र हरी दास एंव जालम. हरी दास  के भारमल एंव शम्बूर. भारमल के उदैभान,मलसी. उदैभान जी स.१७७५ में डूमाड़ा में बसे और वहीं जूंझार हुए.जिनकी  खांडिया बेरा पर यादगार बानी हुई  है. मलसी जी के उर्जन चांपो,सैतान . उर्जन के बीरम,किरपो,सुन्डो. बीरम के मालो,गांगो. माला के जालप एंव करमो. जालप के मोटो ,नानक,केशो,कल्लो. मोटा के लालो (२)
लाला- आसा,अम्बा,गुमान.
आसा- जयराम,तारा.
तारा -दल्ला,जोधा,जेवा.
जोधा- सूजा,रामचन्दर,बुध,सोजी,सांवता.
सूजा- भियां,चमना,उद्दा,वेणा,उर्जा.
भियां -  किशना,रामा,बाघा.
रामा-    नंदराम भूरा.
                            बाघा- भोला.
                            भोला -लाला,तुलसीबाई.
                            लाला -घिस्सा,शांतिबाई .
नन्द राम - बालू,छित्तर,रुगा,गोकुल दास जी,लाडीबाई,गलकुबा                 
                                           
    
                                                                                   .
                                                                 (चन्द्रमा )इनसे चन्द्रवंश चला. ६ सालम ७ साथल ८ सोहड़ ९ हरदेव  १०बालसुर ११ सुकदेव १२ शाला १३ देवसी १४ शिवदान १५ भीमसाल १६ एडीसाल १७ सुरतान १८ देवगन १९ बिरमदेव २० बाघवीर २१ धारवा २२ मोगराव २३ लक्ष्मण भाटी क्षत्रियों से धार के पवार राजपूतों ( अग्नि वंश) से मिल गए. २४ बरसल २५ शम्बू २६ जसरुप २७ बलबीर २८ गुणपाज २९रघुनाथ ३० करमसी ३१ खींवसी ३२ जगमाल ३३ गालन ३४ किशनसी ३५ मांडण ३६ देवचंद (भागंद) ३७ मेहराम (मलसी) ये सूर्यवंशी राठौड़ चांदावत राजपूतों में मिल गए.और बलूंदा(मारवाड़ ) में जा बसे.  ३८ इसान ३९ गोपाल ४० देवराज ४१ भोपाल ४२ जगपाल ४३ आहड़ ४४ आबान ४५ आसी ४६ जेसो ४७ गाजी ४८ लालो(१) ४९ जोरजी के दो पुत्र मुकन जी  और मानसिंघ जी. जोरजी मेघवंशी चांदावत राठौड़ों के साथ गांव बलून्दा में संवत १६५२ में जूंझार हुए .जिनकी तलाब के पाल पर  देवली है.और उनके वंशज भुगानपुरा में जा बसे. मान  सिंह के ३ पुत्र थे भगवान,आसल एंव ऊदा .  भगवान के दो पुत्र हरी दास एंव जालम. हरी दास  के भारमल एंव शम्बूर. भारमल के उदैभान,मलसी. उदैभान जी स.१७७५ में डूमाड़ा में बसे और वहीं जूंझार हुए.जिनकी  खांडिया बेरा पर यादगार बानी हुई  है. मलसी जी के उर्जन चांपो,सैतान . उर्जन के बीरम,किरपो,सुन्डो. बीरम के मालो,गांगो. माला के जालप एंव करमो. जालप के मोटो ,नानक,केशो,कल्लो. मोटा के लालो (२)
लाला- आसा,अम्बा,गुमान.
आसा- जयराम,तारा.
तारा -दल्ला,जोधा,जेवा.
जोधा- सूजा,रामचन्दर,बुध,सोजी,सांवता.
सूजा- भियां,चमना,उद्दा,वेणा,उर्जा.
भियां -  किशना,रामा,बाघा.
रामा-    नंदराम भूरा.
                            बाघा- भोला.
                            भोला -लाला,तुलसीबाई.
                            लाला -घिस्सा,शांतिबाई .
नन्द राम - बालू,छित्तर,रुगा,गोकुल दास जी,लाडीबाई,गलकुबागलकुबाई.
भूरा - राजू,हज़ारी,नंगीबाई,मानीबाई.
रुघा - नारायण,परताब.
नरायण - भंवर लाल ,जगदीश,मोहनलाल.
गोकुलदास - सेवा दास (दत्तक पुत्र ) पूर्व विधायक
सेवा दास - चिरंजी  लाल, मिट्ठन लाल ,ओम प्रकाश,रमेश चन्दर,विजय,लक्ष्मीबाई.
                                                    अत्रि  ऋषि से सोम (चन्दर वंश) से सिंहमार मेघवंशी नख भाटी राजपूत, मरीचि ऋषि से सूर्यवंश नख राठोड राजपूत .
                                                   विश्वामित्र ऋषि से हुतासनी (अग्नि वंश ) नख पंवार राजपूत यह तीनों वंश सिंहमार (मेघवंशियों ) से चालू है .
                                                    चमना, सरुपा,रतन सिंहमार (मेघवंशी) नख राठौड़ डूमाड़ा. पांचों, बीरम,कानो,बभूत,भीको,कुन्नो,दुर्गो,अमरो,रामो,सिंहमार,(मेघवंशी) नख भाटी गांव कुड़ी (मारवाड़). तेजो,हरी,कजोड़,केसो,सिंहमार(मेघवंशी)नख चांदावत राठौड़ गांव बलुन्दा (मारवाड़) तथा भगानपुरा.
                                                     कुलदेवी दुगाय,छाबडे पूजा,बीसन नरच्या, पूजा बाजोट पाट,बीज दिन,इष्ट महादेव, परवार,हनुमान,ऋग्वेद ,गौत्र ,सोमवंशी ,स्यामलदल ,सामवेद,पचरंग निशान ,अबलक घोड़ो ,पल्लीवाल पुरोहित ,छटढाल,दत्तधाळ,थान मुल्तानपुर ,तिलक परपटन, थान लाहौर,कनौज,इंद्रगढ़,मंडावर,मेरता,धार,उज्जैन,बलुन्दा,कुड़ी,भुगानपुर,डूमाड़ा .


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Glossary of Tribes : A.S.ROSE