नाथपंथ और मेघ-
गोरखनाथने नाथपंथ चलाया,यह सभी जानते है; परतु यह बहुत कम लोग जानते है कि इन नाथमत में बहुत से मेघ थे। जो नाथों से पूर्व चली आ रही सिद्ध परंपरा से जुड़े हुए थे। वे बाद में या तो नाथमत में मिल गए या विलीन हो गए। इस सम्बंध में गुजरात के कच्छ की धनोधर पीठ भी है, जिसका पीर कभी मेघवाल होता था। अब वो नहीं है। धनोधर धुनी नाथ मत में मिल गयी। वहां का मुख्य महंत या पुजारी पीर कहलाता था और उसके मातहत धूणियो के गादीपित आयस कहे जाते थे।
गोरखनाथने नाथपंथ चलाया,यह सभी जानते है; परतु यह बहुत कम लोग जानते है कि इन नाथमत में बहुत से मेघ थे। जो नाथों से पूर्व चली आ रही सिद्ध परंपरा से जुड़े हुए थे। वे बाद में या तो नाथमत में मिल गए या विलीन हो गए। इस सम्बंध में गुजरात के कच्छ की धनोधर पीठ भी है, जिसका पीर कभी मेघवाल होता था। अब वो नहीं है। धनोधर धुनी नाथ मत में मिल गयी। वहां का मुख्य महंत या पुजारी पीर कहलाता था और उसके मातहत धूणियो के गादीपित आयस कहे जाते थे।
जोधपुर के महामंदिर की गादी भी धनोधर के अधीन थी। धनोधर में जब वारनाथ गादी पर बैठा तो मेघवाल को पंथ से बाहर कर दिया। इसके सामाजिक, राजनैतिक कारणों के साथ धार्मिक कारण भी थे। यह धूणी धर्म नाथ ने थापी थी।
धर्मनाथ मछन्द्रनाथ के चेले थे। गोरखनाथ भी मछन्द्रनाथ के चेले थे। मछन्द्र और जालंधर को गुरु भाई भी कहा जाता है। मछन्द्र और जालंधर बौद्धों के चौरासी सिद्धों में माने जाते है।
See ref- "Gorakhnath and the kanphata yogi" (1838)
पृ 26पर इस सदर्भ में में लिखा है- "formerly in kucch Dheds were admitted to the order, and one pir of the monastery was Megh nath , of that caste. However the practice was discontinued and Meghvals, or Dheds, were denied admittance." Reference as cited above, Further, Indian antiquary, 1878 at page 10, same facts are affirmed. It writes as under: "Formerly Meghvals, or Dheds were admitted, and one of their pir Meghnath was of this caste. The yogis of Dhinodhar are, therefore, regarded as very low, though the practice of adopting Meghwals is long since discontinued."
See also Reference -I A, 1878, page-10. कच्छ में कई जगह मेघवालों के भव्य मंदिर और मठ थे।
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