[10/30, 21:24] Tara ram Gautam Rishtaa 788: किसी पोस्ट में हम ने यह बताया था कि लाल ढेढ, जो जम्मू-कश्मीर में 14 वीं शदि में हुई, वह जाति से मेघ थी और सिन्ध के दरद इलाके की थी। बहुत बाद में जब अंग्रेजों ने उसकी वाणी को प्रकाशित किया तो उसका फायदा लेने के लिए ब्राह्मणों से उसे ब्राह्मण घोषित करने का षड्यंत्र शुरू किया।
जो भी हो उस समय के हिसाब से वह मेघ ही थी। आज उसे जो भी कहें।
पुरानी पुस्तकों ने ढेढ़ उसकी जाति कही गयीं है और उस समय दरद से आने वाले लोगों को ही ढेढ कहा जाता था। जो एक तरह से मेघ जाती का पर्याय बन गया था, बाद में वह दूसरे अर्थ में बदल गया।
ऊपर के संदर्भ में भी (टिप्पणी देखे) लला ढेढ़ के नाम मे ढेढ़ शब्द को जाति ही कहा गया है।
[10/31, 15:51] Tara ram Gautam Rishtaa 788: हरबंश लीलड़ का एक कॉमेंट एक ग्रुप में-- देखिए:-
"तारा राम जी लीलड़ ने विस्तार एवं प्रमाण सहित राज कुमार जी के सवालों का जवाब देने का प्रयास किया है पर इस विषयांतर्गत बहुत से अनसुलझे सवाल हैं राजस्थान भूगोलिक स्तिथिनुसार उन्होंने दो राजनेताओं सर्वश्री कैलाश मेघवाल व अर्जुन मेघवाल के नाम की आड़ में स्तिथि स्पष्ट करने की कोशिश की है, क्या किसी राजनेता के नाम की आड़ में मेघ जाति का इतिहास स्पष्ट हो सकता है ? तारा राम लीलड़ साहिब साहिब ने आगे इस audio में तीन महापुरुषों कबीर साहिब, रविदास जी, एवं राम देव जी का ज़िक्र कर निर्गुण व सर्गुण भक्ति का ज़िक्र कर मेघ जाति का वर्गीकरण करने की कोशिश की है, लेकिन इन तथ्यों को तो कालविशेष के परिपेक्ष में देखा जा सकता है. असल में अध्यात्मक परिपक्तानुसार इन महापुरुषों ने जातिविशेष की बात की ही नहीं, इन अध्यात्मक विभूतियों को किसी जाति विशेष के साथ जोड़ना हमारी अज्ञानता हो सकती है। अधूरी व तथ्यहीन जानकारियों की वजह से लाखों की संख्या में मेघ दूसरी जातियों व धर्मों में चले गये हैं और धर्मांतरण कर रहे हैं. इस असंवैधानिक कार्यों में बहुत सारी धर्म विशेष की संस्थायें लिप्त हैं, हैरानी जनक सत्य यह है कि तारा राम जी गौतम जो एक नामी लीलड़ गोत्र के परिवार से संबधित हैं , इस गोत्र का एक शानदार इतिहास श्री लाखा जी लीलड़ व सतीमाता फूलां जी कीं गाथा राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में गाईं जाती हैं, मुझे गर्व है कि मैं उस गोत्र एंव क्षेत्र से संबधित हूँ, लेकिन तारा राम जी ने उस गोत्र एंव जाति का त्याग कर अपना सरनाम गौतम धारण कर लिया.अपनी लेखनी में भी उन्होंने भारत की मेघ जाती के मूल को बौद्धधर्म के साथ जोड़ने की कचेष्टा की है, जो सरासर इस जाति के इतिहास के साथ खिलवाड़ है."
[10/31, 16:01] Tara ram Gautam Rishtaa 788: मेरा यह मानना है-
औऱ यह जो लीलड़ शब्द जो मेघों में पाया जाता है , वह भौगोलिक शब्द है और उन मेघों के लिए प्रयुक्त होता था, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी "लीलड़ी" के मुहाने पर बसे थे। वहां से विस्थापित होकर जहाँ भी गए वे उसी नाम से जाने जाते रहे और बाद में यह मेघों की एक जाति बन गयी। सिंध में भट्टी या भाटी लोगों का आधिपत्य होने के समय इनका विस्थापन हुआ, इसलिए अपने को भाटी राजपूतों से निसृत भी मानते है, जो ठीक नहीं है।
सिंध की सहायक नदियों के लिए एंसीएन्ट रिवर्स पर अच्छी पुस्तक में देखा जा सकता है, जहाँ लीलड़ी नदी का भी जिक्र मिलेगा।
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