Religious outlook and perception:abrogation of impurity:- Source Tara Ram

Thursday, November 8, 2018

Religious outlook and perception :Abrogation of impurity.
धार्मिक सोच और अपवित्रता का निराकरण..... यहाँ फिर पंजाब के मेघों का उदाहरण विचारणीय है। धर्म के द्वारा थोपी गयी अपवित्रता धर्म बदलने के साथ ही खत्म होती हुई देखी गयी है। ...जो भी हो, कई मामलों में जातिगत अपवित्रता का निराकरण एक धर्म से दूसरे धर्म में जाने से हो जाता है। इस में हिन्दू धर्म से ईसाई या मुसलमान बनने वाले कई उदाहरण है और आज भी जाति के साथ चिपकी हुई जातिगत अपवित्रता भी धर्म परिवर्तन के पीछे  एक बड़ा कारण है।
                हिन्दू धर्म में जाति के कारण अपवित्र या वर्जना माने जाने वाले व्यक्ति के धर्म बदलने पर उसके साथ चिपकी हुई अपवित्रता या अछूतपन मिट जाता है। इस प्रसंग में राय बहादुर हीरालाल ने शोध आलेख ' Caste impurity in the Central Provinces' में पंजाब के मेघों का उल्लेख करते हुए लिखा कि कुछ घंटों पूर्व जो वर्जित या अपवित्र थे, वे हिन्दू से मुसलमान होते ही स्वीकार्य हो गए।
               एक समय पंजाब में किसी जगह मेघ लोग रेलवे में कुली (मजदूर) का काम करते थे। उनको बहुत जोर की प्यास लगी। आस-पास पानी का कोई स्रोत नहीं था। लेकिन वहां एक कुआँ था। मेघों ने उस कुँए से पानी निकलना चाहा तो वहां के एक उच्च जाति के आदमी ने बखेड़ा खड़ा कर दिया और हिन्दुओं ने उन्हें कुँए से पानी निकालने नहीं दिया। मेघ लोगों की पानी के बिना हालत ख़राब होने लग गयी। उन्होंने विचार किया एक मुसलमान इस कुँए से पानी भर सकता है, परंतु एक मेघ नहीं..। सब एक राय होकर पास में बनी मस्जिद में गए और उसी समय मुसलमान हो गए।
                अब मुसलमान बनने के बाद वे कुछ मुस्लमानों और कुछ ऊँची जाति के लोगों के साथ पुनः कुँए पर आये। अब उन्हें मना करने का कोई कारण नहीं था। अब वे उस कुँए का उपयोग कर सकते थे...करने लगे। स्पष्तः धर्म बदलने से अब उनकी तथाकथित अपवित्रता का निरास हो चुका था। उन्हें कुछ ही घंटों में पानी मिल गया।............।
                 राय बहादुर हीरालाल ने लिखा कि कुछ समय पूर्व 30000 मेघों ने मुसलमान धर्म स्वीकार  कर लिया था, उस से उनकी जातिगत  वर्जना या अपवित्रता का निराकरण ( Abrogation of Impurity) हो गया।
Reference:  'Man in India', Vol-3, March & June, 1923, No. 1 & 2. Here below is placed a Page 71.


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