मेघ डुग्गर की प्राचीन शासक कौम:
सौर्स तारा राम गौतम। सांस्कृतिक दृष्टि से डुग्गर प्रदेश, भारत के उत्तर में अवस्थित वह पर्वतीय भूखण्ड है, जिसके अन्तर्गत जम्मू कश्मीर राज्य के जम्मू मंडल, पंजाब के होशियारपुर और गुरदासपुर जनपदों के पर्वतीय क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, चम्बा, मंडी, विलासपुर् और हम्मीरपुर क्षेत्र तथा पाकिस्तान स्थित सियालकोट और जफरवाल तहसील के एक सौ सोलह गांव परिगणित होते है, किन्तु भारत विभाजन के बाद और भारत में राज्यों के पुनर्गठन के पश्चात् अब केवल जम्मू प्रान्त ही डुग्गर का पर्यायवाची माना जा रहा है। जहां पर मेघों की सर्वाधिक आबादी आज भी निवास करती है। यह विदित है कि डुग्गर क्षेत्र में मेघ जाति का प्राचीन काल से ही आधिपत्य रहा है और यहां प्राचीन काल से ही मेघों की सघन आबादी निवास करती रही है। भारत का विभाजन होने पर इस क्षेत्र के बहुत से लोग भारत के पंजाब, राजस्थान और अन्य प्रदेशों में आ बसे है, फिर भी वर्तमान में भी पाकिस्तान में भी इनकी बहुत बड़ी आबादी निवास करती है। विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि मेघ एक प्राचीन नागवंशीय जाति है और महाभारत की मद्र जाति की वंशधर कही गयी है। प्राचीन काल में हिमाचल का डुग्गर क्षेत्र 'मद्र देश' का ही भाग था, इसका पता हमें पद्मपुराण के पाताल खण्ड में आये विवरण से भी चलता है। डुग्गर के हिमता क्षेत्र में मिले एक त्रिशूल पर ब्राह्मी लिपि में विभुनाग और गणपति नाग का नाम उत्कीर्ण है। इससे भी स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यहां नागों/मद्रों का शासन था और यह भूमि इन लोगों से आबाद थी। लगभग 9वीं शताब्दी तक नागों/मद्रों के वंशधर मेघ यहां शासनारुढ़ थे। इसकी पुष्टि विभिन्न वंशावलियों से होती है। डुग्गर के इतिहास में उल्लेखित है कि "डुग्गर की एक और जाति जिस का उल्लेख लोककथाओं ओर दन्तकथाओं में आता है , वह "मेघ" है। डॉ सुखदेव सिंह चाडक का मत है कि मेघ जाति के लोग केवल डुग्गर में ही रहते है। अतः सम्भावना की जा सकती है कि ये खसों के साथ या उनसे भी पहले इस क्षेत्र में आये हों। इन की गणना किरात जातियों के अन्तर्गत नहीं की जा सकती है, क्योंकि इनकी जीवन शैली में शमान संस्कृति के चिह्न नहीं मिलते। मेघ कबीले के लोगों का रंग गेहूंआ और कद किरातों से कुछ बड़ा है। इन्होंने रावी नदी से लेकर मनावर तवी के मध्य कई बस्तियां बसाई और डुग्गर की अधिकांश भूमि पर आधिपत्य स्थापित किया। ये कृषि कर्म में बहुत रूचि लेते थे और पशु-चारण भी इनका व्यतसाय था। किरात कबीले की उपजातियां इन्हें अपने से श्रेष्ठ मानती थी, अतः ये लोग उनके लिए पूज्य रहे है ।" (डुग्गर का इतिहास, पृष्ठ 12) आठवीं-नौंवी शताब्दी में मेघों का आधिपत्य इस क्षेत्र में निर्बाध नहीं रहा। नवोदित राणाओं से उनकी लड़ाईयां होती रही। ऐसे में मेघों के कई कबीलों को प्रव्रजन भी करना पड़ा। परंपरा कहती है कि आज से बारह सौ वर्ष पूर्व मेघों और राणाओं के बीच सत्ता का संघर्ष था और संघर्ष में मेघों ने नवोदित राजपूतों के साथ अपना संगठन बनाया और नवोदित राणाओं को चुनौती दी। धीरे-धीरे मेघ राज सत्ता से दूर हो गए और अपनी सत्ता को राजपूतों को हस्तांतरित कर दिया। मेघों ने स्वतः राजपूतों को अपना शासक स्वीकार किया, न कि यह राजपूतों की मेघों पर विजय थी। इस तथ्य का उल्लेख डुग्गर के इतिहास में निम्नवत मिलता है: "लोक परम्परा के अनुसार आज से बारह सौ वर्षं पूर्व इस क्षेत्र में राणा प्रणाली का ही शासन था। राणा बहुत ही क्रूर थे, अतः स्थानीय लोग उन से बहुत दुःखी थे। इस इलाके मेँ जो लोग रहते थे, उन में मेघ कबीले के लोग अधिक संख्या में थे। उन्होंने भी अपना अलग राज्य स्थापित कर लिया था। जिस का सरदार भी 'मेघ' कबीले का था। किन्तु मेघ कबीले के सरदार को राणा बहुत तंग करते थे। वे उसके इलाके में घुस कर पशुओं को हांक कर ले जाते थे और जनः तथा धन की भी हानि करते थे। अन्ततः तंग आकर मेघ सरदार ने विलासपुर के चन्देल राजा वीर चन्द से सहायता मांगी । राजा वीरचन्द ने मेघ सरदार की सहायता के लिए अपने भाई गम्भीर चन्द को भेजा। गम्भीर चन्द ने मेघ कबीले के लोगों को सहायता से अत्याचारी राणाओं को इस क्षेत्र से भगा दिया। मेघ कबीले के सरदार ने राणाओं से मुवित पाने के बाद गम्भीरचन्द को ही इस क्षेत्र का राजा स्वीकार किया। इस प्रकार नवमीं शताब्दी में राजा गम्भीर राय ने इस राज्य की स्थापना की। उसने तवी नदी के तट पर 'चक्क' गांव को अपनी राजधानी बनाया। बारहवीं शताब्दी के लगभग गम्भीर राय के वंशज चंदेल राजाओं ने अपनी जाति के नाम पर लद्दा पहाड़ के नीचे एक सीढीनुमा मैदान में एक नये नगर की नीव रखी, जिस का नामकरण उन्होने चन्देल नगरी किया। बाद में चन्देल नगरी का ही नाम बदलते- बदलते चनैनी पडा । चनैनी के नामकरण के बाद हिमता या हियुंतां राज्य का नाम भी चनैनी राज्य पड गया। चनैनी राज्य का पुराना नाम हियुंता था। अतः इस राज्य के राजवंश के लोगों को हिंताल कहा जाने लगा।" (डुग्गर का इतिहास, पृष्ठ 155) वर्तमान में मेघ न तो एक शासक कौम है और न ही सवर्ण हिंदुओं में शुमार है। यह जम्मू की एक पिछड़ी जाति मानी जाति है और राज्य की अनुसूचित जातियों की सूची में मेघ और कबीरपंथी के रूप में सूचीबद्ध है।
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