MARWAR IS ANCIENT LAND OF MEGS :
IT WAS A POLITICAL UNIT OF SINDH TOO
AND IN ANCIENT TIME UNDER PERSIAN EMPIRE.
NOMENCLATURE WAS DRIVED FROM MEG, IT IS STATED IN ASI REPORTS TOO.
मारवाड़ शब्द पर कुछ टिप्पणियां
Scattered comments on Marwar ..
प्राचीन काल में कई भौगोलिक क्षेत्रों के नाम वहां निवास करने वाले जातीय समूहों या लोगों के नाम से प्रचलित हुए, इसमें वर्त्तमान राजस्थान के कई भू भाग है, जो वहां निवास करने वाले लोगों के नाम से जाने जाते है। इनमे "मारवाड़" नाम से विख्यात भू भाग भी एक है।
" मारवाड़ " का नाम यहाँ निवास करने वाले म्हार लोगों के कारण ही पड़ा। म्हारों के कारण म्हार वाड, मारवाड़ आदि नाम प्रचलन में आया। यहाँ राजपूतों के आधिपत्य से पूर्व यह भू भाग म्हारों का निवास स्थान था और नाग जातीय लोगों से निवासित था। मल्ल, मालव, म्हार, मेघ एक ही जातीय समूह से माने गए है।
म्हार, मेर, मेव, मल्ल, आदि जन समूहों से मारवाड़, मेर वाड, मेवाड़/मेवात, मल्लानी आदि राजस्थान के प्राचीन भू खण्डों के नाम है।
मराठी साहित्य में इस बारे में बहुत कुछ है। विट्ठल राम जी शिंदे की पुस्तक में भी है। महार अपनी उत्पति सोमवंश से भी जोड़ते है।
म्हार शब्द ही मा'र : मार हुआ।
विगत कुछ शताब्दियों से मारवाड़ का अर्थ country of death कह कर प्रचलित किया गया, जो पूर्णतः गलत है। कुछ लोगों ने मरू भूमि और मरुस्थल नाम भी दिए परन्तु म्हार शब्द इतना दृढ हो गया कि कुछ भी नया नाम देने पर भी लोग इसे मारवाड़ ही पुकारते है।
अगर मार और वाड शब्द से उत्पति माने तो भी " संस्कृत " में " मार " शब्द नहीं मिलता है। "मार" शब्द पालि का तकनिकी शब्द है। जिसका निश्चित अर्थ पालि में है। इसप्रकार से यह भू भाग प्राचीन कल में बौद्ध धर्म की शरण स्थली रहा है, यह प्रमाणित होता है। राजपूतों की सत्ता हो जाने के बाद भी वे मारवाड़ शब्द से पीछा नहीं छुड़ा सके।
और भी कई तथ्य है। यहाँ R G Latham की पुस्तक की मारवाड़ शब्द पर की गयी टिप्पणी दी जा रही है-
"Marwar: From-----like all countries--------. It is Marwar, marusthan, or marudesh- not the country of death ( as has been argued ), but the country of mhars(mairs)" page- 386-387, Descriptive Ethnology, volume-2, edition-1859, London.
"मारवाड़ शब्द मारूवार का अपभ्रंष है। यथार्थ में इसका नाम मरुस्थल या मरुदेश है, जिसका अर्थ होता है मरे हुए लोगों का देश।-------- इतिहासवेत्ताओं ने नासमझी से मा'र देश लिखा है।"
उक्त पंक्ति "जोधपुर राज्य का इतिहास" पुस्तक की है। इसमे यह भी लिखा है कि मुसल्मानो ने इसका गलत नाम "मार देश" लिखा है।
यह अंग्रेंजो के पहले भी मार वाड ही कहा जाता था। काठियावाड़ - मार वाड उस समय प्रशिद्ध भू भाग थे और ये नाम वहां रहने वाले लोगों के कारन ही पड़े। मोहिले, मेर, मेघ और भील आदि लोग ही यहाँ रहते थे। जिनसे प्राय नवोदित राजपूतों से संघर्ष हुए। कई पुरानी जातियों ने नए नाम अख्तियार कर लिए। कई प्रवासी हो हो गए। कइयों ने धर्म बदल लिया।
परन्तु यह स्पष्ट है कि राजपूतों से पहले यहाँ बौद्ध धर्म ही लोक धर्म था। जिसे ख़त्म करने के लिए ब्राह्मणवादी लोगों ने राजपूत नाम के सामाजिक और राजनितिक घटक को जन्म दिया। इसका संकेत कई जगह है। यहाँ मारवाड़ मर्दुम शुमारी-1891, से इसका संकेत दिया जा रहा है-
"पंवार,चौहान, सोलंखी, अग्निवंशी है-------इन अग्नि वंशी राजपूतों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इनको बौद्ध मत वालों के मारने के लिए वशिष्ठ वगेरह ऋषियों ने आबू पहाड़ के ऊपर होम करके अग्नि कुंद से पैदा किया था।" पृष्ठ-3,
और भी कई प्रमाण है जो इस भू भाग को बुद्ध से जोड़ता है। कुछ जातकों में तो बुद्ध को भी यहाँ विचरण करता हुआ वर्णित किया है।
मारवाड़ तो बहुत छोटा भूभाग है, एसिया के रेगिस्तान का। ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान में। जैसलमेर भी रेगिस्तान पर उसे माड देश कहते थे। बीकानेर भी रेगिस्तान पर उसे जांगल देश कहते। बाड़मेर रेगितन पर उसे मल्लानी कहते। रेगिस्तान के एक विशेष क्षेत्र को ही मारवाड़ कहते है। जयपुर ढूंढाड कहलाता। ये सभी मरुभूमि , पर सबको मारवाड़ नहीं कहते। अजमेर को मेरवाडा आदि आदि।
अंग्रेजो से पहले की लिखी जियोग्राफी, इतिहास, एथ्नोग्रफी और भाषा विज्ञानं को थोडा देख लीजिये। ज्ञान में वृद्धि ही होगी। सायन, पाणिनी और मारवाड़ में प्रचलित कातंत्र व्याकरण और कच्चायन व्याकरण भी देख लीजिय, फिर बात करते है। सिंध और गुजरात का पुराना इतिहास जरुर देखे क्योंकि प्राचीन कल में यह भू भाग राजनैतिक रूप से उनका भी भाग रहा है।
आप प्राचीन इतिहास को कैसे नकारेंगे?
राजस्थान में सबसे प्राचीन जो शिला लेख मिले है। वह ब्राह्मी लिपि और पालि भाषा मे ही क्यों है?
राजस्थान मुजियम अजमेर में रखे नगरी के लेख को देखे- उसमे मलव गण का स्पष्ट उलेख-" कृतेसु-----मलावपुर्व्वाया"
कोटा के कणास्वा में मिले लेख में"---- सप्त्भिर्म्मालवेशानाम"
जयपुर के पास मिले सिक्कों में मालवां,मालवानाम, मगय आदि लेख मिलते है। ये सब मल्ल किंवा मालव लोगों के अस्तित्व को ही सिद्ध करते है। जिनका राजपूतो से पहले यहाँ राज्य था।
जोधपुर और अजमेर के पास मिले सबसे पुराने शिलालेख भी ब्रहमी लिपि और पालि में है तो ऐसे में उस समय के शब्दों का अर्थ भी पालि से ही ग्रहण करना पड़ेगा।
This was land of Megs- it is historical proved. You can see details in my coming books on Meghavansh: History & Culture
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